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सत्तरहवाँ लेश्यापद : तृतीय उद्देशक]
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होकर उत्पन्न होता है, उसी लेश्या से युक्त होकर उवृत्त होता है ? इस प्रकार जैसी पृच्छा असुरकुमारों के विषय में की गई है, वैसी ही यहाँ भी समझ लेनी चाहिए ।
[१२१०-१ उ.] हाँ, गौतम ! कृष्णलेश्या वाला यावत् तेजोलेश्या वाला पृथ्वीकायिक (क्रमश:) कृष्णलेश्या वाले यावत् तेजोलेश्या वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है, (किन्तु कृष्णलेश्या में उत्पन्न होने वाला वह पृथ्वीकायिक) कदाचित् कृष्णलेश्यायुक्त होकर उद्वर्तन करता है, कदाचित् नीललेश्या से युक्त होकर उद्वर्त्तन करता है तथा कदाचित् कापोतलेश्या से युक्त होकर उद्वर्तन करता है, कदाचित् जिस लेश्या वाला होकर उत्पन्न होता है, उसी लेश्या वाला होकर उद्वर्तन करता है। (विशेष यह है कि वह) तेजोलेश्या से युक्त होकर उत्पन्न तो होता है, किन्तु तेजोलेश्या वाला होकर उद्बत नहीं होता।
[२] एवं आउक्काइय-वणप्फइकाइया वि भाणियव्वा ।
[१२१०-२] अप्कायिकों और वनस्पतिकायिकों के (सामूहिकरूप से उत्पाद-उद्वर्तन के) विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए । ___ [३] से णूणं भंते ! कण्हलेससे णीललेस्से काउलेस्से तेउक्काइए कण्हलेसेसु णीललेसेसु काउलेसेसु तेउक्काइएसु उववजति ? कण्हलेसे णीललेसे काउलेसे उव्वदृति ? जल्लेसे उववजति तल्लेसे उव्वदृति?
हंता गोयमा ! कण्हलेस्से णीललेस्से काउलेस्से तेउक्काइए कण्हलेसेसु णीललेसेसु काउलेसेसु तेउक्काइएसु उववजति, सिय कण्हलेसे उव्वट्टति सिय णीललेसे सिय काउलेस्से उव्वदृति, सिय जल्लेसे उववज्जति तल्लेसे उव्वदृति ।
_ [१२१०-३ प्र.] भगवन् ! क्या कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या वाला तेजस्कायिक, (क्रमश:) कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या वाले तेजस्कायिकों में ही उत्पन्न होता है ? तथा क्या वह (क्रमशः) कृष्णलेश्या वाला, नीललेश्या वाला तथा कापोतलेश्या वाला होकर ही उद्वृत्त होता है ? (अर्थात् वह) जिस लेश्या से युक्त होकर उत्पन्न होता है, क्या उसी लेश्या से युक्त होकर उद्वृत्त होता है ?
[१२१०-३ उ.] हाँ, गौतम ! कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या वाला तेजस्कायिक, (क्रमश:) कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या वाले तेजस्कायिकों में उत्पन्न होता है, किन्तु कदाचित् कृष्णलेश्या से युक्त होकर उद्वर्तन करता है, कदाचित् नीललेश्या से युक्त होकर, कदाचित् कापोतलेश्या से युक्त होकर उद्वर्त्तन करता है। (अर्थात्) कदाचित् जिस लेश्या से युक्त होकर उत्पन्न होता है, उसी लेश्या से युक्त होकर उद्वर्तन करता है, (कदाचित् अन्य लेश्या से युक्त होकर भी उद्वर्तन करता है।)
[४] एवं वाउक्काइया बेइंदिय-तेइंदिया-चउरिदिया वि भाणियव्वा ।
[१२१०-४] इसी प्रकार वायुकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के (उत्पाद उद्वर्तन के) सम्बन्ध में कहना चाहिए ।