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________________ [ प्रज्ञापनासूत्र ३१४] सामूहिक लेश्या की अपेक्षा से चौवीसदण्डकों में उत्पाद - उद्वर्तननिरूपण १२०८. सेणूणं भंते ! कण्हलेस्से णीलेस्से काउलेस्से णेरइए कण्हलेस्सेसु णीललेस्सेसु काउलेस्सेसु णेरइएस उववज्जति ? कण्हलेस्से णीललेस्से काउलेस्से उव्वट्टति जल्लेसे उववज्जति तल्लेसे उव्वट्टति ? हंता गोयमा ! कण्हलेस्स - णीललेस्स - काउलेस्सेसु उववज्जति, जल्लेसे उववज्जति तल्ले से उव्वट्टति । [१२०८ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या वाला नैरयिक क्या क्रमशः कृष्णलेश्या वाले, नीललेश्या वाले और कापोतलेश्या वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है? क्या वह (क्रमश:) कृष्णलेश्या वाला, नीललेश्या वाला तथा कापोतलेश्या वाला होकर ही ( वहाँ से) उद्वर्त्तन करता है ? (अर्थात्-) (जो नारक) जिस लेश्या से युक्त होकर उत्पन्न होता है, क्या वह उसी लेश्या से युक्त होकर मरण करता ? [१२०८ उ.] हाँ, गौतम ! ( वह क्रमशः) कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या वाले नारकों में उत्पन्न होता है और जो नारक जिस लेश्या वाला होकर उत्पन्न होता है, वह उसी लेश्या से युक्त होकर मरण करता है । १२०९. से णूणं भंते ! कण्हलेस्से जाव तेउलेस्से असुरकुमारे कण्हलेस्सेसु जाव तेउलेस्से असुरकुमारेसु उववज्जति ? एवं जहेव नेरइए (सु. १२०८ ) तहा असुरकुमारे वि जाव थणियकुमारे वि । [१२०९ प्र.] भगवन् ! क्या कृष्णलेश्या वाला, यावत् तेजोलेश्या वाला असुरकुमार (क्रमश:) कृष्णलेश्या वाले यावत् तेजोलेश्या वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है ? ( और क्या वह कृष्णलेश्या वाला यावत् तेजोलेश्या वाला होकर ही असुरकुमारों से उद्धृत होता है ? ) [१०९ उ.] हाँ, गौतम ! जैसे (सू. १२०८ में नैरयिक के उत्पाद - उद्वर्त्तन के सम्बन्ध में कहा, , वैसे ही असुरकुमार के विषय में भी, यावत् स्तनितकुमार के विषय में भी कहना चाहिए ।) १२१०.[ १ ]से णूणं भंते ! कण्हल्लेसे जाव तेउल्लेसे पुढविकाइए कण्हल्लेसेसु जाव तेउल्लेसेसु पुढविकाइएसु उववज्जति ? एवं पुच्छा जहा असुरकुमाराणं । हंता गोयमा ! कण्हलेस्से जाव तेउलेस्से पुढविकाइए कण्हलेस्सेसु जाव तेउलेस्सेसु पुढविक्काइए सु उववज्जति, सिय कण्हलेस्से उवट्टति सिय णीललेस्से सिय काउलेस्से उव्वदृति, सिय जल्लेस्से उववज्जइ तल्लेसे उव्वट्ट, तेउलेस्से उववज्जइ, णो चेव णं तेउलेस्से उव्वट्टति । [१२१०-१ प्र.] भगवन् कृष्णलेश्या वाला यावत् तेजोलेश्या वाला पृथ्वीकायिक, क्या (क्रमश:) कृष्णलेश्या वाले यावत् तेजोलेश्या वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है ? ( और क्या वह जिस लेश्या से युक्त
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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