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[ प्रज्ञापनासूत्र
उदय होने पर जीव वर्त्तमान भव से उद्वृत्त होता है और जिस भवसम्बन्धी आयु का उदय हो, उसी नाम से उसका व्यवहार होता है ।
इसी प्रकार असुरकुमार आदि शेष २३ दण्डकों के उत्पाद एवं उद्वर्तन के विषय में समझ लेना चाहिए ।
लेश्यायुक्त चौवीसदण्डकवर्ती जीवों की उत्पाद - उद्वर्तनप्ररूपणा
१२०१.[ १ ] से णूणं भंते ! कण्हलेस्से णेरइए कण्हलेस्सेसु णेरइएसु उववज्जति ? कण्हलेस्से उव्वट्टति ? जल्लेस्से उववज्जति तल्लेसे उव्वदृति ?
हंता गोयमा ! कण्हलेसे णेरइए कण्हलेसेसु णेरइएसु उववज्जति, कण्हलेसे उव्वट्टति, जल्लेसे उववज्जति तल्लेसे उव्वट्टति ।
[१२०१-१ प्र.] भगवन् ! क्या कृष्णलेश्या वाला नारक कृष्णलेश्या वाले नारकों में ही उत्पन्न होता है? कृष्णलेश्या वालों ही (नारकों में से) उद्वृत्त होता है ? ( अर्थात्- ) जिस लेश्या वाला होकर उत्पन्न होता है, उसी लेश्या वाला होकर उद्वर्त्तन करता है ?
[१२०१-१ उ.] हाँ, गौतम ! कृष्णलेश्या वाला नारक कृष्णलेश्या वाले नारकों में उत्पन्न होता है, कृष्णलेश्या वाला होकर ही ( वहाँ से) उद्वृत्त होता है। जिस लेश्या वाला होकर उत्पन्न होता है, उसी लेश्या वाला होकर उद्वर्त्तन करता (निकलता है।
[ २ ] एवं णीललेसे वि काउलेसे वि ।
[१२०१ -२] इसी प्रकार नीललेश्या वाले और कापोतलेश्या वाले (नारक के उत्पाद और उद्वत्तन के सम्बन्ध में) भी (समझ लेना चाहिए ।)
१२०२. एवं असुरकुमारा वि जाव थणियकुमारा वि । णवरं तेउलेस्सा अब्भइया ।
[१२०२] असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक भी इसी प्रकार से उत्पाद और उद्वर्तन का कथन करना चाहिए । विशेषता यह है कि इनके सम्बन्ध में तेजोलेश्या का कथन ( अभिलाप) अधिक करना चाहिए।
१२०३. [ १ ] से णूणं भंते ! कण्हलेसे पुढविक्काइए कण्हलेस्सेसु पुढविक्काइएसु उववज्जति ? कण्हलेस्से उव्वदृति ? जल्लेसे उववज्जति तल्लेसे उव्वट्टति ?
हंता गोयमा ! कण्हलेस्से पुढविक्काइए कण्हलेस्सेसु पुढविक्काइएसु उववज्जति; सिए कण्हलेस्से उव्वदृति, सिय नीललेसे उव्वदृति, सिय काउलेसे उव्वट्टति, सिय जल्लेसे उव्वज्जइ तल्लेसे उव्वट्टति ।
१. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक ३५३