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________________ ३१०] [ प्रज्ञापनासूत्र उदय होने पर जीव वर्त्तमान भव से उद्वृत्त होता है और जिस भवसम्बन्धी आयु का उदय हो, उसी नाम से उसका व्यवहार होता है । इसी प्रकार असुरकुमार आदि शेष २३ दण्डकों के उत्पाद एवं उद्वर्तन के विषय में समझ लेना चाहिए । लेश्यायुक्त चौवीसदण्डकवर्ती जीवों की उत्पाद - उद्वर्तनप्ररूपणा १२०१.[ १ ] से णूणं भंते ! कण्हलेस्से णेरइए कण्हलेस्सेसु णेरइएसु उववज्जति ? कण्हलेस्से उव्वट्टति ? जल्लेस्से उववज्जति तल्लेसे उव्वदृति ? हंता गोयमा ! कण्हलेसे णेरइए कण्हलेसेसु णेरइएसु उववज्जति, कण्हलेसे उव्वट्टति, जल्लेसे उववज्जति तल्लेसे उव्वट्टति । [१२०१-१ प्र.] भगवन् ! क्या कृष्णलेश्या वाला नारक कृष्णलेश्या वाले नारकों में ही उत्पन्न होता है? कृष्णलेश्या वालों ही (नारकों में से) उद्वृत्त होता है ? ( अर्थात्- ) जिस लेश्या वाला होकर उत्पन्न होता है, उसी लेश्या वाला होकर उद्वर्त्तन करता है ? [१२०१-१ उ.] हाँ, गौतम ! कृष्णलेश्या वाला नारक कृष्णलेश्या वाले नारकों में उत्पन्न होता है, कृष्णलेश्या वाला होकर ही ( वहाँ से) उद्वृत्त होता है। जिस लेश्या वाला होकर उत्पन्न होता है, उसी लेश्या वाला होकर उद्वर्त्तन करता (निकलता है। [ २ ] एवं णीललेसे वि काउलेसे वि । [१२०१ -२] इसी प्रकार नीललेश्या वाले और कापोतलेश्या वाले (नारक के उत्पाद और उद्वत्तन के सम्बन्ध में) भी (समझ लेना चाहिए ।) १२०२. एवं असुरकुमारा वि जाव थणियकुमारा वि । णवरं तेउलेस्सा अब्भइया । [१२०२] असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक भी इसी प्रकार से उत्पाद और उद्वर्तन का कथन करना चाहिए । विशेषता यह है कि इनके सम्बन्ध में तेजोलेश्या का कथन ( अभिलाप) अधिक करना चाहिए। १२०३. [ १ ] से णूणं भंते ! कण्हलेसे पुढविक्काइए कण्हलेस्सेसु पुढविक्काइएसु उववज्जति ? कण्हलेस्से उव्वदृति ? जल्लेसे उववज्जति तल्लेसे उव्वट्टति ? हंता गोयमा ! कण्हलेस्से पुढविक्काइए कण्हलेस्सेसु पुढविक्काइएसु उववज्जति; सिए कण्हलेस्से उव्वदृति, सिय नीललेसे उव्वदृति, सिय काउलेसे उव्वट्टति, सिय जल्लेसे उव्वज्जइ तल्लेसे उव्वट्टति । १. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक ३५३
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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