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सत्तरहवाँ लेश्यापद : तृतीय उद्देशक]
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हा)
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[१२०३-१ प्र.] भगवन् ! क्या कृष्णलेश्या वाला पृथ्वीकायिक कृष्णलेश्या वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है ? तथा क्या कृष्णलेश्या वाला होकर (वहाँ से) उद्वर्तन करता है ? जिस लेश्या वाला होकर उत्पन्न होता है, (क्या) उसी लेश्या वाला होकर (वहाँ से) उद्वर्तन करता (मरता) है ? - [१२०३-१ उ.] हाँ, गौतम ! कृष्णलेश्या वाला पृथ्वीकायिक कृष्णलेश्या वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है, (किन्तु) उद्वर्तन (मरण) कदाचित् कृष्णलेश्या वाला हो कर, कदाचित् नीललेश्या वाला हो कर
और कदाचित् कापोतलेश्या वाला होकर करता है। (अर्थात्) जिस लेश्या वाला हो कर उत्पन्न होता है, कदाचित् उस लेश्या वाला हो कर उद्वर्तन करता है। और (कदाचित् अन्य लेश्यावाला होकर मरण करता है।)
[२] एवं णीलेस्सा काउलेस्सा वि ।
[१२०३-२] इसी प्रकार नीललेश्या वाले और कापोतलेश्या वाले (पृथ्वीकायिक के उत्पाद और उद्वर्तन के सम्बन्ध में) भी (समझ लेना चाहिए ।)
[३] से णूणं भंते ! तेउलेस्से पुढविक्काइए तेउलेस्सेसु पुढविक्काइएसु उव्वजइ ? पुच्छा । __ हंता गोयमा ! तेउलेसे पुढविकाइए तेउलेसेसु पुढविक्काइएसु उववज्जति, सिय कण्हलेसे उव्वट्टइ, सिय णीललेसे उव्वट्टइ, सिय काउलेसे उव्वट्टति; तेउलेसे उववजति, णो चेवणं तेउलेस्से उव्वदृति ।
[१२०३-३ प्र.] भगवन् ! तेजोलेश्या वाला पृथ्वीकायिक क्या तेजोलेश्या वाल पृथ्वीकायिकों में ही उत्पन्न होता है ? तेजोलेश्या वाला हो कर ही उद्वर्तन करता है ?, (इत्यादि पूर्ववत्) पृच्छा।
[१२०३-३ उ.] हाँ, गौतम ! तेजोलेश्या वाला पृथ्वीकायिक तेजोलेश्या वाले पृथ्वीकायिकों में ही उत्पन्न होता है, (किन्तु) उद्वर्त्तन कदाचित् कृष्णलेश्या वाला हो कर, कदाचित् नीललेश्या वाला हो कर, कदाचित् कापोतलेश्या वाला होकर करता है, (वह) तेजोलेश्या से युक्त हो कर उत्पन्न होता है, (परन्तु). तेजोलेश्या से युक्त होकर उद्वर्तन नहीं करता।
[४] एवं आउक्काइय-वणस्सइकाइया वि । - [१२०३-४] अप्कायिकों और वनस्पतिकायिकों की (उत्पाद-उद्वर्तनसम्बन्धी) वक्तव्यता भी इसी प्रकार (पृथ्वीकायिकों के समान) समझनी चाहिए।
[५] तेऊ वाऊ एवं चेव । णवरं एतेसिं तेउलेस्सा णस्थि ।
[१२०३-५] तेजस्कायिकों और वायुकायिकों की (उत्पाद-उद्वर्त्तनसम्बन्धी वक्तव्यता) इसी प्रकार है (किन्तु) विशेषता यह है कि इनमें तेजोलेश्या नहीं होती।
१२०४. बिय-तिय-चउर दिया एवं चेव तिसु लेसासु । [१२०४] द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों का (उत्पाद-उद्वर्त्तन सम्बन्धी कथन) भी इसी