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[प्रज्ञापनासूत्र
अप्पा वा ४?
गोयमा ! सव्वत्थोवा णेरड्या कण्हलेसा, णीललेस्सा असंखेजागुणा, काउलेस्सा असंखेज्जगुणा।
[११७१ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या वाले नारकों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ?
[११७१ उ.] गौतम ! सबसे थोड़े कृष्णलेश्या वाले नारक हैं, उनसे असंख्यातगुणे नीललेश्या वाले हैं और उनसे भी असंख्यातगुणे कापोतलेश्या वाले हैं ।
११७२. एतेसिणं भंते ! तिरिक्खजोणियाणं कण्हलेस्साणंजाव सुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा ४?
गोयमा ! सव्वत्थोवा तिरिक्खजोणिया सुक्कलेसा, एवं जहा ओहिया (सु. ११७० ) णवरं अलेस्सवजा ।
[११७२ प्र.] भगवन् ! इन कृष्णलेश्या से लेकर शुक्ललेश्या वाले तिर्यचयोनिकों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक हैं ? ___ [११७२ उ.] गौतम ! सबसे कम तिर्यञ्च शुक्ललेश्या वाले हैं इत्यादि जैसे पहले सूत्र ११७० में औधिक (समुच्चय) का प्रतिपादन किया गया है, उसी प्रकार यहाँ भी समझ लेना चाहिए । विशेषता यह है कि तिर्यञ्चों में अलेश्य नहीं कहना चाहिए, क्योंकि उनमें अलेश्य होना सम्भव नहीं है)।
११७३. एतेसि णं भंते ! एगिदियाणं कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा ४? ___ गोयमा ! सव्वत्थोवा एगिंदिया तेउलेस्सा, काउलेस्सा अणंतगुणा, णीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया । __[११७३ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्या से लेकर तेजोलेश्या तक के एकेन्द्रियों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक हैं ?
[११७३ उ.] गौतम ! सबसे कम तेजोलेश्या वाले एकेन्द्रिय हैं, उनसे अनन्तगुणे अधिक कापोतलेश्या वाले एकेन्द्रिय हैं, उनसे नीललेश्या वाले विशेषाधिक हैं और उनसे भी कृष्णलेश्या वाले विशेषाधिक हैं ।
११७४. एतेसि णं भंते ! पुढविक्काइयाणं कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा ४ ?
गोयमा ! जहा ओहिया एगिंदिया (सु. ११७३) । णवरं काउलेस्सा असंखेजगुणा । [११७४ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्या से लेकर तेजोलेश्या तक के पृथ्वीकायिकों में से कौन, किनसे अल्प,