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________________ सत्तरहवाँ लेश्यापद : द्वितीय उद्देशक] [२९३ बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [११७४ उ.] गौतम ! जिस प्रकार समुच्चय एकेनिद्रयों का (सू. ११७३ में) कथन किया है, उसी प्रकार पृथ्वीकायिकों (के अल्पबहुत्व) का कथन करना चाहिए । विशेषता इतनी है कि कापोतलेश्या वाले पृथ्वीकायिक असंख्यातगुणे हैं । ११७५. एवं आउक्काइयाण वि । [११७५] इसी प्रकार कृष्णादिलेश्या वाले अप्कायिकों में अल्पबहुत्व का निरूपण भी समझ लेना चाहिए । ११७६. एतेसि णं भंते ! तेउक्काइयाणं कण्हलेस्साणं णीललेस्साणं काउलेस्साण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा ४? गोयमा ! सव्वत्थोवा तेउक्काइया काउलेस्सा,णीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया। [११७६ प्र.] भवगन् ! इन कृष्णलेश्या वाले, नीललेश्या वाले और कापोतलेश्या वाले तेजस्कायिकों में कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [११७६ उ.] गौतम ! सबसे कम कापोतलेश्या वाले तेजस्कायिक हैं, उनसे नीललेश्या वाले विशेषाधिक हैं, उनसे कृष्णलेश्या वाले विशेषाधिक हैं । ११७७. एवं वाउक्काइयाण वि। [११७७] इसी प्रकार (कृष्णादिलेश्याविशिष्ट) वायुकायिकों का भी अल्पबहुत्व (समझ लेना चाहिए)। ११७८. एतेसि णं भंते ! वणस्सइकाइयाणं कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साण य.? जहा एगिंदियओहियाणं (सु. ११७३)। [११७८ प्र.] भगवन् ! इन कृष्णलेश्या से लेकर तेजोलेश्या वाले वनस्पतिकायिकों में (कौन, किनसे अल्व, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ) ? [११७८ उ.] गौतम ! जैसे (सू. ११७३ में) समुच्चय (औधिक) एकेन्द्रिय जीवों का अल्पबहुत्व कहा हैं, उसी प्रकार वनस्पतिकायिकों का अल्पबहुत्व समझ लेना चाहिए । ११७९. बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदियाणं जहा तेउक्काइयाणं (सु. ११७६)। [११७९] द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों का अल्पबहुत्व (सू. ११७६ में उक्त) तेजस्कायिकों के समान है। ११८०.[१] एतेसि णं भंते ! पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा ४?
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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