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सत्तरहवाँ लेश्यापद : द्वितीय उद्देशक]
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११७०. एतेसि णं भंते ! सलेस्साणं जीवाणं कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साणं अलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा ४ ?
गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा सुक्कलेस्सा, पम्हलेस्सा संखेजगुण, तेउलेस्सा संखेजगुणा, अलेस्सा अणंतगुणा, काउलेस्सा अणंतगुणा, णीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया, सलेस्सा विसेसाहिया ।
[११७०] भगवन ! इन सलेश्य, कृष्णलेश्या से लेकर शुक्ललेश्या तक के और अलेश्य जीवों में कौन, किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ?
___ [११७०] गौतम ! सबसे थोड़े जीव शुक्ललेश्या वाले हैं, (उनसे) पद्मलेश्या वाले संख्यातगुणे हैं, (उनसे) तेजोलेश्या वाले संख्यातगुणे हैं, (उनसे) अलेश्य अनन्तगुणे हैं, उनसे कापोतलेश्या वाले अनन्तगुणे हैं, उनसे नीललेश्या वाले विशेषाधिक हैं, उनसे कृष्णलेश्या वाले विशेषाधिक हैं और सलेश्य उनसे भी विशेषाधिक हैं ।
विवेचन - सलेश्य-अलेश्य आदि जीवों का अल्पबहुत्व - प्रस्तुत सूत्र में सलेश्य, कृष्णलेश्या से लेकर शुक्ललेश्या वाले जीवों और अलेश्य जीवों के अल्पबहुत्व का विचार किया गया है ।
अल्पबहुत्व की समीक्षा - शुक्ललेश्या वाले सबसे कम इसलिए कहे गए हैं कि शुक्कलेश्या कतिपय पंचेन्द्रियतिर्यचों में, मनुष्यों में और लान्तक आदि कल्पों के देवों में ही पाई जाती है। उनकी अपेक्षा संख्यातगुणे अधिक पद्मलेश्या वाले जीव कहे हैं, क्योंकि वह पंचेन्द्रियतिर्यचों में, मनुष्यों में तथा सनत्कुमार, माहेन्द्र और ब्रह्मलोक नाम कल्पों में पाई जाती है। उनसे संख्यातगुणे अधिक तेजोलेश्या वाले जीव इसलिए कहे गए हैं कि तेजोलेश्या बादर पृथ्वीकायिकों, बादर अप्कायिकों, प्रत्येक वनस्पतिकायिकों में तथा पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों में, भवनपति, वाणव्यन्तर ज्योतिष्क, सौधर्म और ईशान देवों में पाई जाती है। तेजोलेश्यी जीवों की अपेक्षा अलेश्य जीव अनन्तगुणे अधिक इसलिए कहे गए हैं, क्योंकि सिद्ध जीव अनन्त हैं और वे अलेश्य हैं। अलेश्यों की अपेक्षा कापोतलेश्या वाले वनस्पतिकायिक जीव अनन्तगुणित होने से कापोतलेश्या वाले जीव अलेश्यों से अनन्तगुणे अधिक हैं। क्लिष्ट और क्लिष्टतर अध्यवसाय वाले जीव अपेक्षाकृत अधिक होते हैं, इस कारण कापोतलेश्या वालों की अपेक्षा नीललेश्या वाले और नीललेश्या वालों की अपेक्षा कृष्णलेश्या वाले जीव विशेषाधिक होते हैं। विविधलेश्याविशिष्ट चौवीसदण्डकवर्ती जीवों का अल्पबहुत्व
११७१. एतेसिणं भंते ! णेरइयाणं कण्हलेस्साणं नीललेस्साणं काउलेस्साण य कतरे कतरेहितो
जहाँ भी 'अप्पा वा' के आगे'४' का अंक है, वहाँ वह 'बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा' इन शेष तीनों पदों सहित चार पदों सहित चार पदों का सूचक है ।
प्रज्ञापनासूत्र, मलय. वृत्ति, पत्रांक ३४५