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[११६८-२] इसी प्रकार ज्योतिष्क देवियों के विषय में (जानना चाहिए 1)
११६९. [ १ ] वेमाणियाणं पुच्छा ?
गोया ! तिणि । तं जहा - तेउलेस्सा पम्हलेस्सा सुक्कलेस्सा
[११६९-१ प्र.] भगवन् ! वैमानिक देवों में कितनी लेश्याएँ हैं ?
[ प्रज्ञापनासूत्र
[११६९-१ उ.] गौतम ! ( उनमें ) तीन लेश्याएँ हैं - १. तेजोलेश्या, २. पद्मलेश्या और ३. शुक्ललेश्या ।
[२] वेमाणिणीणं पुच्छा ?
गोमा ! गाउलेसा ।
[११६९-२ प्र.] वैमानिक देवियों की लेश्या सम्बन्धी पृच्छा है ?
[११६९-२ उ.] गौतम ! उनमें एकमात्र तेजोलेश्या होती है ।
विवेचन- चौवीस दण्डकों में लेश्यासम्बन्धी प्ररूपणा - प्रस्तुत तेरह सूत्रों में नारक से वैमानिक देवियों पर्यन्त समस्त संसारी जीवों में से किसमें कितनी लेश्याएँ पाई जाती हैं ?, यह प्रतिपादन किया है ।
सम्बन्धित संग्रहणी गाथायें इस प्रकार हैं
किण्हानीला काऊ तेऊलेसा य भवणवंतरिया । जोइस - सोहम्मीसाण तेऊलेसा मुणेयव्वा ॥ १ ॥ कप्पे सणकुमारे माहिंदे चेव बंभलोए य । एएसु पम्हलेसा, तेण परं सुक्कलेसा उ ॥ २ ॥
पुढवी - आऊ - वणस्सइ - बायर - पत्तेय लेस चत्तारि ।
गब्भय - तिरिय-नरेसु छल्लेसा, तिन्नि सेसाणं ॥३॥
संग्रहणीगाथार्थ - भवनवासियों और व्यन्तर देवों में कृष्ण, नील, कापोल और तेजोलेश्या होती हैं। ज्योतिष्कों तथा सौधर्म और ईशान देवों में केवल तेजोलेश्या होती है। सनत्कुमार, माहेन्द्र और ब्रह्मलोक में पद्मलेश्या और उनसे आगे के कल्पों में शुक्ललेश्या होती है। बादर पृथ्वीकाय, अप्काय और प्रत्येक वनस्पतिकाय में प्रारम्भ की चार लेश्याएँ, गर्भज तिर्यञ्चों और मनुष्यों में छह लेश्याएँ और शेष जीवों में प्रथम की तीन लेश्याएँ होती हैं । "
सलेश्य अलेश्य जीवों का अल्पबहुत्व
१. प्रज्ञापनासूत्र, मलय. वृत्ति, पत्रांक ३४४