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________________ सत्तरहवाँ लेश्यापद : द्वितीय उद्देशक ] ११६५. [ १ ] देवाणं पुच्छा ? गोयमा ! छ एताओ चेव । [११६५-१ प्र.] भगवन् ! देवों में कितनी लेश्याएँ होती हैं ? [११६५-१ उ.] गौतम ! ये ही छह लेश्याएँ होती हैं । [२] देवीणं पुच्छा ? गोयमा ! चत्तारि । तं जहा- कण्हलेस्सा जाव तेउलेस्सा । [११६५-२ प्र.] भगवन् ! देवियों में कितनी लेश्याएँ होती हैं ? [११६५-२ उ.] गौतम ! ( उनमें ) चार लेश्याएँ होती हैं, वे इस प्रकार- कृष्णलेश्या से लेकर तेजोलेश्या तक । ११६६. [ १ ] भवणवासीणं भंते ! देवाणं पुच्छा ? गोयमा ! एवं चेव । [११६६-१ प्र.] भगवन् ! भवनवासी देवों में कितनी लेश्याएँ कही गई हैं ? [११६६-१ उ.] गौतम ! इसी प्रकार (पूर्ववत् ) इनमें चार लेश्याएँ (होती हैं।) [ २ ] एवं भवणवासिणीण वि । [११६६-२] इसी प्रकार भवनवासी देवियों में भी चार लेश्याएँ समझनी चाहिए । ११६७. [ १ ] वाणमंतरदेवाणं पुच्छा ? [११६७-१ प्र.] भगवन् ! वाणव्यन्तर देवों में कितनी लेश्याएँ कही हैं ? [११६७-१ उ.] गौतम ! इसी प्रकार चार लेश्याएँ (समझनी चाहिए ।) [ २ ] एवं वाणमंतरीण वि । [११६७-२] वाणव्यन्तर देवियों में भी ये ही चार लेश्याएँ समझनी चाहिए । ११६८. [ १ ] जोइसियाणं पुच्छा ? गोयमा ! एगा तेउलेस्सा । [ २८९ [११६८ - १ प्र.] ज्योतिष्क देवों के सम्बन्ध में प्रश्न है ? [११६८ - १ उ.] गौतम ! इनमें एकमात्र तेजोलेश्या होती है। [२] एवं जोइसिणीण वि
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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