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________________ दसवाँ चरमपद] [९ (बहुवचनान्त) चरम (चरमाणि) असंख्यातगुणे हैं । अचरम और (बहुवचनान्त) चरम, ये दोनों विशेषाधिक हैं। प्रदेशों की अपेक्षा से इस रत्नप्रभापृथ्वी के चरमान्तप्रदेश, सबसे कम हैं। (उनकी अपेक्षा) अचरमान्तप्रदेश असंख्यातगुणे हैं। चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश, ये दोनों विशेषाधिक हैं । द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से सबसे कम इस रत्नप्रभापृथ्वी का एक अचरम है। (उसकी अपेक्षा) असंख्यातगुणे (बहुवचनान्त) चरम हैं। अचरम और (बहुवचनान्त) चरम, ये दोनों ही विशेषाधिक हैं। (उनसे) प्रदेशापेक्षया चरमान्तप्रदेश असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) असंख्यातगुणे अचरमान्तप्रदेश हैं । चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश, ये दोनों विशेषाधिक हैं। ७७८. एवं जाव अहेसत्तमा। सोहम्मस्स । जाव लोगस्स य एवं चेव। [७७८] इसी प्रकार (शर्कराप्रभापृथ्वी से लेकर) नीचे की सातवीं (तमस्तमः) पृथ्वी तक तथा सौधर्म से लेकर लोक (अच्युत, नौ ग्रैवेयक, पंच अनुत्तर विमान, ईषत्प्राग्भारापृथ्वी एवं लोक) तक पूर्वोक्त प्रकार से अचरम, (बहुवचनान्त) चरमों, चरमान्तप्रदेशों तथा अचरमान्तप्रदेशों के अल्पबहुत्व की प्ररुपणा करनी चाहिए। ७७९. अलोगस्स णं भंते ! अचरिमस्स य चरिमाण य चरिमंतपएसाण य अचरिमंतपएसाण य दव्वट्ठयाए पदेसट्ठयाए दव्वट्ठपदेसट्टयाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? ____गोयमा ! सव्वत्थोवे अलोगस्स दव्वट्ठयाए-एगे अचरिमे, चरिमाइं असंखेजगुणाई, अचरिमंच चरिमाणि य दो वि विसेसाहियाइं पदेसट्टयाए-सव्वत्थोवा अलोगस्स चरिमंतपदेसा, अचरिमंतपदेसा अणंतगुणा, चरिमंतपदेसा य अचरिमंतपदेसा य दो वि विसेसाहिया।दव्वट्ठयाए-सव्वत्थोवे अलोगस्स दव्वट्ठयाए एगे अचरिमे, चरिमाइं असंखेजगुणाई, अचरिमं च चरिमाणि य दो वि विसेसाहियाई, चरिमंतपदेसा असंखेजगुणा अणंतगुणा, चरिमंतपएसा य अचरिमंतपएसा य दो वि विसेसाहिया। [७७९ प्र.] भगवन् ! अलोक के अचरम, चरमों, चरमान्तप्रदेशों और अचरमान्तप्रदेशों में से द्रव्य की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से एवं द्रव्य-प्रदेशों की अपेक्षा से कौन किनसे अल्प हैं, बहुत हैं, तुल्य हैं, अथवा विशेषाधिक हैं? - [७७९ उ.] गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा से-सबसे कम अलोक का एक अचरम है। (उसकी अपेक्षा) असंख्यातगुणे (बहुवचनान्त) चरम हैं । अचरम और (बहुवचनान्त) चरम, ये दोनों विशेषाधिक हैं। प्रदेशों की अपेक्षा से-सबसे कम अलोक के चरमान्तप्रदेश हैं, (उनसे) अनन्तगुणे अचरमान्त प्रदेश हैं । चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश, ये दोनों विशेषाधिक हैं। द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से-सबसे कम अलोक का एक अचरम है। (उससे) बहुवचनान्त चरम असंख्यातगुणे हैं। अचरम और (बहुवचनान्त) चरम, ये दोनों विशेषाधिक हैं। (उनसे) चरमान्तप्रदेश असंख्यातगुणे हैं, (उनसे भी) अनन्तगुणे अचरमान्तप्रदेश हैं। चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश, ये दोनों विशेषाधिक हैं।
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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