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[ प्रज्ञापनासूत्र
७८०. लोगालोगस्स णं भंते । अचरिमस्स य चरिमाण य चरिमंतपएसाण य अचरिमंतपएसाण यदव्वट्टयाए पदेसट्टयाए दव्वपएसट्टयाए कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया
वा?
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गोयमा ! सव्वत्थोवे लोगालोगस्स दव्वट्टयाए- एगमेगे अचरिमे, लोगस्स चरिमाइं असंखेज्जगुणाई, अलोगस्स चरिमाइं विसेसाधियाइं, लोगस्स य अलोगस्स य अचरिमं च चरिमाणि य दो वि विसेसाधियाइं । पदेसट्टयाए- सव्वत्थोवा लोगस्स चरिमंतपदेसा, अलोगस्स चरिमंतपदेसा विसेसाहिया, लोगस्स अचरिमंतपदेसा असंखेज्जगुणा, अलोगस्स अचरिमंतपदेसा अनंतगुणा, लोगस्स य अलोगस्स य चरिमंतपदेस य अचरिमंतपदेसा य दो वि विसेसाहिया । दव्वट्ठपदेसट्टयाए- सव्वत्थोवे लोगालोगस्स च चरिमंतपदेसा य अचरिमंतपदेसा य दो वि विसेसाहिया । दव्वट्ठपदेसट्टयाए- सव्वत्थोवे लोगालोगस्स दव्वट्टयाए एगमेगे अचरिमे, लोगस्स चरिमाइं असंखेज्जगुणाई, अलोगस्स चरिमाइं विसेसाहियाई लोगस्स य अलोगस्स य अचरिमं च चरिमाणि य दो वि विसेसाहियाई, लोगस्स चरिमंतपएसा असंखेज्जगुणा, अलोगस्स चरिमंतपएसा विसेसाहिया, लोगस्स अचरिमंतपएसा असंखेज्जगुणा, अलोगस्स अचरिमंतपएसा अणंतगुणा, लोगस्स य अलोगस्य य चरिमंतपएसा य अचरिमंतपएसा य दो वि विसेसाहिया, सव्वदव्वा विसेसाहिया, सव्वपएसा अनंतगुणा, सव्वपज्जवा अनंतगुणा ।
[७८० प्र.] भगवन् ! लोकालोक के अचरम, (बहुवचनान्त) चरमों, चरमान्तप्रदेशों और अचरमान्तप्रदेशों में द्रव्य की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से, द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से कौन, किनसे अल्प हैं, बहुत हैं, तुल्य हैं, अथवा विशेषाधिक हैं?
[ ७८० उ. ] गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा से सबसे कम लोकालोक का एक-एक अचरम है । (उसकी अपेक्षा) लोक के (बहुवाचनान्त) चरम असंख्यातगुणे हैं, अलोक के (बहुवचनान्त) चरम विशेषाधिक हैं, लोक और अलोक का अचरम और ( बहुवचनान्त) चरम, ये दोनों विशेषाधिक हैं। प्रदेशों की अपेक्षा सेसबसे थोड़े लोक के चरमान्तप्रदेश हैं, अलोक के चरमान्तप्रदेश विशेषाधिक हैं, (उनसे) लोक के अचरमान्तप्रदेश असंख्यातगुणे हैं, उनसे) अलोक के अचरमान्तप्रदेश अनन्तगुणे हैं। लोक और अलोक के चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश, ये दोनों विशेषाधिक हैं। द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से सबसे कम लोक- अलोक का एकएक अचरम है, (उसकी अपेक्षा) लोक के (बहुवचनान्त) चरम असंख्यातगुणे हैं, ( उनसे) अलोक के (बहुवचनान्त) चरम विशेषाधिक हैं। लोक और अलोक का अचरम और (बहुवचनान्त) चरम, ये दोनों विशेषाधिक हैं । (उनसे) लोक के चरमान्तप्रदेश (उनसे) असंख्यातगुणे हैं, उनसे) अलोक के चरमान्तप्रदेश विशेषाधिक हैं, (उनसे) लोक के अचरमान्तप्रदेश असंख्यातगुणे हैं, उनसे अलोक के चरमान्तप्रदेश अनन्तगुणे है, लोक और अलोक के चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश, ये दोनों विशेषाधिक हैं। उनकी लोक और अलोक के चरम और अचरम प्रदेशों की अपेक्षा सब द्रव्य (मिलकर) विशेषाधिक हैं। (उनकी अपेक्षा) सर्व प्रदेश अनन्तगुणे हैं (और उनकी अपेक्षा भी) सर्व पर्याय अनन्तगुणे हैं।