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________________ ८ ] अचरमान्तप्रदेश कहलाते हैं। इस प्रकार मुख्यता एकान्तदुर्नय का निराकरण करने वाले भगवान् के उत्तर से रत्नप्रभा आदि वस्तुएँ अवयव - अवयवीरूप हैं, अवयव और अवयवी में कथंचित् भेद और कथंचित् अभेद है, यह अनेकान्त सिद्धान्त सूचित हो गया। इस प्रकार जैसे रत्नप्रभापृथ्वी के विषय में प्रश्न और निर्वचन का ( युक्तिपूर्वक विश्लेषण) करके प्ररूपणा की गई, वैसी ही प्ररूपणा शर्कराप्रभापृथ्वी से लेकर तमस्तम: पृथ्वी तक तथा सौधर्म से लेकर अनुत्तर विमान तक एवं ईषत्प्राग्भारापृथ्वी और लोक के विषय भी प्रश्न एवं उत्तर का युक्तिपूर्वक विश्लेषण करके करनी चाहिए। अलोक के विषय में भी इसी प्रकार प्रश्नोत्तररूप सूत्र बनाकर प्ररूपणा करनी चाहिए। अलोक के लिए लोक के निष्कुटों में प्रविष्ट जो खण्ड हैं, वे चरम हैं, शेष सब अचरम हैं तथा चरमखण्डगत प्रदेश चरमान्तप्रदेश हैं एवं अचरमखण्डगत प्रदेश अचरमान्तप्रदेश हैं । [ प्रज्ञापनासूत्र चरमाचरमादि पदों का अल्पबहुत्व ७७७. इमीसे णं भंते । रयणप्पभाए पुढवीए अचरिमस्स य चरिमाण य चरिमंतपसाण य अचरिमंतपसाण य दव्वट्ठाए पएसट्टयाए दव्वट्ठपएसट्टयाए कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा। सव्वत्थोवे इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए दव्वट्टयाए- एगे अचरिमे, चरिमाइं असंखेज्जगुणाई, अचरिमं च चरिमाणि य दो वि विसेसाहियाई । पदेसट्टयाए - सव्वत्थोवा इमीसे रयणप्पा पुढवीए चरिमंतपदेसा, अचरिमंतपएसा असंखेज्जगुणा, चरिमंतपएसा य अचरिमंतपएसा य दो वि विसेसाहिया। दव्वट्ठपदेसट्टयाए - सव्वत्थोवा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए दव्वट्टयाए एगे अचरिमे, चरिमाइं असंखेज्जगुणाई, अचरिमं च चरिमाणि य दो वि विसेसाहियाई, परसट्टयाए चरिमंतपसा असंखेज्जगुणा, अचरिमंतपएसा असंखेज्जगुणा, चरिमंतपएसा य अचरिमंतपएसा य दो विविसेसाहिया । [७७७ प्र.] भगवन्। इस रत्नप्रभापृथ्वी के अचरम और बहुवचनान्त चरम, चरमान्तप्रदेशों तथा अचरमान्तप्रदेशों में द्रव्यों की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से और द्रव्य-प्रदेश (दोनों) की अपेक्षा से कौन, किससे अल्प हैं, बहुत हैं, तुल्य हैं अथवा विशेषाधिक हैं ? [ ७७७ उ.] गौतम । द्रव्य की अपेक्षा से इस रत्नप्रभापृथ्वी का एक अचरम सबसे कम है। उसकी अपेक्षा १. २. प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्रांक २२९ प्रज्ञापना. मलय वृत्ति, पत्रांक २२९
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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