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________________ २७६ ] सेकेणट्टेणं ? तं गोयमा ! पुढविक्काइया सव्वे माइमिच्छद्दिट्ठी, तेसिं णेयतियाओ पंच किरियाओ कज्जंति, जहा- आरंभिया १ परिग्गहिया २ मायावत्तिया ३ अपच्चक्खाणकिरिया ४ मिच्छादंसणवत्तिया ५ । [११३९ प्र.] भगवन् ! सभी पृथ्वीकायिक समान क्रिया वाले होते हैं ? [११३९ उ.] हाँ गौतम ! सभी पृथ्वीकायिक समक्रिया वाले होते हैं । [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? [ प्रज्ञापनासूत्र [उ.] गौतम ! सभी पृथ्वीकायिक मायी - मिथ्यादृष्टि होते हैं, उनके नियत ( निश्चित) रूप से पांचों क्रियाएँ होती हैं। यथा- (१) आरम्भिकी, (२) पारिग्रहिकी, (३) मायाप्रत्यया, (४) अप्रत्याख्यानक्रिया और (५) मिथ्यादर्शनप्रत्यया । ( इसी कारण ) गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि सभी पृथ्वीकायिक समान क्रियाओं वाले होते हैं । ११४०. एवं जाव चउरिंदिया | [११४०] पृथ्वीकायिकों के समान ही (अप्कायिकों, तेजस्कायिकों, वायुकायिकों, वनस्पतिकायिकों, द्वीन्द्रियों, त्रीन्द्रियों) यावत् चतुरिन्द्रियों की ( समान वेदना और समान क्रिया कहनी चाहिए) । ११४१. पंचिंदियतिरिक्खजोणिया जहा णेरड्या (सु. ११२४-३०) । णवरं किरियाहिं सम्मद्दिट्ठी मिच्छद्दिट्ठी । तत्थ णं जे ते सम्मद्दिट्ठी ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - असंजया य संजयासंजया य । तत्थ णं जे ते संजयासंजया तेसि णं तिण्णि किरियाओ कज्जंति, तं जहा आरंभिया परिग्गहिया मायावत्तिया । तत्थ णं जे ते असंजया तेसि णं चत्तारि किरियाओ कज्जंति, तं जहा आरंभिया १ परिग्गहिया २ मायावत्तिया ३ अपच्चक्खाणकिरिया ४ । तत्थ णं जे ते मिच्छद्दिट्ठी जे य सम्मामिच्छद्दिट्ठी सिं यइयाओ पंच किरियाओ कज्जंति, तं जहा आरंभिया १ परिग्गहिया २ मायावत्तिया ३ अपच्चक्खाणकिरिया ४ मिच्छादंसणवत्तिया ५ । सेसं तं चेव । - - - [११४२] पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों का ( आहारादि सप्तद्वार विषयक कथन ) (सू. ११२४ से ११३० तक में उक्त) नैरयिक जीवों के (आहारादि विषयक कथन के अनुसार समझना चाहिए । विशेष यह कि क्रियाओं में नारकों से कुछ विशेषता है। पंचेन्द्रियतिर्यञ्च तीन प्रकार के हैं, यथा सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि । उनमें जो सम्यग्दृष्टि हैं, वे दो प्रकार के हैं - असंयत और संयतासंयत । जो संयतासंयत हैं, उनको तीन क्रियाएँ लगती हैं, वे इस प्रकार - आरम्भिकी, पारिग्रहिकी और मायाप्रत्यया । जो असंयत होते हैं, उनको चार क्रियाएँ लगती हैं ।) इस प्रकार - १. आरम्भिकी, २. पारिग्रहिकी, ३. मायाप्रत्यया और ४. अप्रत्याख्यानक्रिया । (पूर्वोक्त) इन तीनों में से जो मिथ्यादृष्टि हैं और जो सम्यग् - मिथ्यादृष्टि हैं, उनको निश्चित रूप से पांच क्रियाएँ लगती हैं, वे इस प्रकार १. आरम्भिकी, २. पारिग्रहिकी, ३. मायाप्रत्यया, ४ . अप्रत्याख्यानक्रिया और ५. मिथ्यादर्शनप्रत्यया । शेष सब निरूपण उसी प्रकार ( पूर्ववत् करना चाहिए ।)
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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