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________________ सत्तरहवाँ लेश्यापद : प्रथम उद्देशक] [२६९ से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ णेरड्या णो सव्वे समकिरिया ? गोयमा ! णेरइया तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - सम्मट्ठिी मिच्छट्ठिी सम्मामिच्छट्ठिी । तत्थ णं जे ते सम्मट्ठिी तेसिणं चत्तारि किरियाओ कजंति, तं जहा - आरंभिया १ परिग्गहिया २ मायावत्तिया ३ अपच्चक्खाणकिरिया ४ । तत्थ णं जे ते मिच्छट्ठिी जे य सम्मामिच्छट्टिी तेसिं नियताओ पंच किरियाओ कजंति, तं जहा - आरंभिया १ परिग्गहिया २ मायावत्तिया ३ अपच्चक्खाणकिरिया ४ मिच्छादसणवत्तिया ५, से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ णेरइया णो सव्वे समकिरिया ६ । [११२९ प्र.] भगवन् ! सभी नारक क्या समान क्रिया वाले होते हैं ? [११२९ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । [प्र.] भगवन् ! किस हेतु से आप ऐसा कहते हैं कि सभी नारक समान क्रिया वाले नहीं होते ? [उ.] गौतम ! नारक तीन प्रकार के कहे हैं - सम्यदृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि। और सम्यग्मिथ्यादृष्टि । उनमें से जो सम्यग्दृष्टि हैं, उनके चार क्रियाएँ होती हैं, वे इस प्रकार - १. आरम्भिकी, २. पारिग्रहिकी, ३. मायाप्रत्यया, ४. अप्रत्याख्यानक्रिया। जो मिथ्यादृष्टि हैं तथा जो सम्यग्मिथ्यादृष्टि हैं, उनके नियम (निश्चितरूप से) पांच कियाएँ होती हैं - १. आरम्भिकी, २. पारिग्रहिकी, ३. मायाप्रत्यया, ४. अप्रत्याख्यानक्रिया और ५. मिथ्यादर्शनप्रत्यया । हे गौतम ! इस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि सभी नारक समान क्रिया वाले नहीं होते । -छठा द्वार ॥६॥ ११३०. णेरइया णं भंते ! सव्वे समाउया ? गोयमा ! णो इणढे समढे । से केणटे णं भंते ! एवं वुच्चइ ? गोयमा ! णेरइया चउव्विहा पण्णत्ता,तं जहा - अत्थेगइया समाउया समोववण्णगा १ अत्थेगइया समाउया विसमोववण्णगा २ अत्थेगइया विसमाउया समोववण्णगा ३ अत्थेगइया विसमाउया विसमोववण्णगा ४, से एएणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ णेरड्या णो सव्वे समाउया णो सव्वे समोववण्णगा ७ । [११३० प्र.] भगवन् ! क्या सभी नारक समान आयुष्य वाले हैं ? [११३० उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । [प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि सभी नारक समान आयु वाले नहीं होते ? [उ.] गौतम ! नैरयिक चार प्रकार के कहे गए हैं, वे इस प्रकार- १. कई नारक समान आयु वाले और समान (एक साथ) उत्पत्ति वाले होते हैं, २.कई समान आयु वाले, किन्तु विषम उत्पत्ति (आगे-पीछे उत्पन्न
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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