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________________ २६८] [प्रज्ञापनासूत्र से एएणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ णेरइया णो सव्वे समवण्णा ३ । [११२६ प्र.] भगवन् ! क्या नैरयिक सभी समान वर्ण वाले होते हैं ? [११२६ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । [प्र.] भगवन् ! किस हेतु से आप ऐसा कहते हैं कि नैरयिक सभी समान वर्ण वाले नहीं होते ? [उ.] गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के कहे गए हैं। वे.इस प्रकार - पूर्वोपपन्नक और पश्चादुपपन्नक। उनमें से जो पूर्वोपपन्नक हैं, वे अधिक विशुद्ध वर्ण वाले होते हैं और उनमें जो पश्चादुपपन्नक होते हैं, वे अविशुद्ध वर्ण वाले होते हैं। इस कारण हे गौतम ! ऐसा कहा जाता हैं कि नैरयिक सभी समान वर्ण वाले नहीं होते । _ -तृतीय द्वार ॥३॥ , ११२७. एवं जहेव वण्णेण भणिया तहेव लेस्सासु वि विसुद्धलेस्सतरागा अविसुद्धलेस्सतरागा य भाणियव्वा ४ । __ [११२७] जैसे वर्ण की अपेक्षा से नारकों को विशुद्ध और अविशुद्ध कहा है, वैसे ही लेश्या की अपेक्षा भी नारकों को विशुद्ध और अविशुद्ध कहना चाहिए । -चतुर्थद्वार ॥ ४॥ ११२८. णेरड्या णं भंते ! सव्वे समवेवणा? गोयमा ! णो इणढे समटे । से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ णेरड्या णो सव्वे समवेयणा ? गोयमा ! णेरइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - सण्णिभूया य असण्णिभूया य । तत्थ णं जे ते सण्णिभूया ते णं महावेदणतरागा । तत्थ णं जे ते असण्णिभूया ते णं अप्पवेदणतरागा, से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ नेरइया नो सव्वे समवेयणा ५ । [११२८ प्र.] भगवन् ! सभी नारक क्या समान वेदना वाले होते हैं ? [११२८ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । [प्र.] भगवन् ! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं कि सभी नारक समवेदना वाले नहीं होते? [उ.] गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के कहे हैं, वे इस प्रकार - संज्ञीभूत (जो पूर्वभव में संज्ञी पंचेन्द्रिय थे) और असंज्ञीभूत (जो पूर्वभव में असंज्ञी थे)। उनमें जो संज्ञीभूत होते हैं, वे अपेक्षाकृत महान् वेदना वाले होते हैं और उनमें जो असंज्ञीभूत होते हैं वे अल्पतर वेदना वाले होते हैं। इस कारण हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि सभी नैरयिक समवेदना वाले नहीं होते । -पंचमद्वार ॥५॥ ११२९. णेरइया णं भंते ! सव्वे समकिरिया ? गोयमा ! णो इणढे समटे ।
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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