________________
२५४]
[प्रज्ञापनासूत्र होती है, जम्बूद्वीप नामक द्वीप में शब्दापाती और विकटापाती वृत्तवैताढ्यपर्वत में समस्त दिशाओं-विदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातगति होती है, जम्बूद्वीप नामक द्वीप में महाहिमवन्त और रुक्मी नामक वर्षधर पर्वतों में सब दिशाओं-विदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातगति होती हैं, जम्बूद्वीप नामक द्वीप में हरिवर्ष और रम्यकवर्ष में सब दिशाओंविदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातगति होती है, जम्बूद्वीप नामक द्वीप में गन्धावती (गन्धापाती) माल्यवन्तपर्याय वृत्तवैयाढ्यपर्वत में समस्त दिशाओं-विदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातगति होती है, जम्बूद्वीप नामक द्वीप में निषध
और नीलवन्त नामक वर्षधर पर्वत में सब दिशाओं और विदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातगति होती है, जम्बूद्वीप नामक द्वीप में पूर्वविदेह और अपरविदेह में सब दिशाओं और विदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातगति होती है, जम्बूद्वीप नामक द्वीप में देवकुरु और उत्तरकुरु (क्षेत्र) में सब दिशाओं-विदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातगति है तथा जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दरपर्वत की सब दिशाओं और विदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातगति है। लवणसमुद्र में सब दिशाओं और विदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातगति है, धातकीषण्डद्वीप में पूर्वार्द्ध और पश्चिमार्द्ध मन्दरपर्वत की सब दिशाओं-विदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातगति है, कालोदसमुद्र में समस्त दिशाओं-विदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातगति है, पुष्करवरद्वीपार्द्ध के पूर्वार्द्ध के भरत और ऐरवत वर्ष में सब दिशाओं और विदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातगति है, पुष्करवरद्वीपार्द्ध के पश्चिमार्द्ध मन्दरपर्वत में सब दिशाओं-विदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातगति
है।
यह हुआ सिद्धक्षेत्रोपपातगति का वर्णन । इस प्रकार क्षेत्रोपपातगति का निरूपण पूर्ण हुआ ॥१॥। १०९९. से किं तं भवोववातगती ? भवोववातगती चउव्विहा पण्णत्ता । तं जहा- णेरइय. जाव देवभवोववातगती ।
से किंतं णेरइयभवोववातगती ? णेरइयभवोववातगती सत्तविहा पण्णत्ता । तं जहा० एवं सिद्धवजो भेओ भाणियव्वो, जो चेव खेत्तोववातगतीए सो चेव भवोववातगतीए ।सेत्तं भवोववातगती २।
[१०९९ प्र.] भवोपपातगति कितने प्रकार की है ?
[१०९९ उ.] भवोपपातगति चार प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार- नैरयिकभवोपपातगति (से लेकर) देवभवोपपातगति पर्यन्त ।
[प्र.] नैरयिकभवोपपातगति किस प्रकार की है ?
[उ.] नैरयिक भवोपपातगति सात प्रकार की कही गई है, वह इस प्रकार- इत्यादि सिद्धों को छोड़ कर सब भेद (तिर्यग्योनिकभवोपपातगति के भेद, मनुष्यभवोपपातगति के भेद और देवभवोपपातगति के भेद) कहने चाहिए । जो प्ररूपणा क्षेत्रोपपातगति के विषय में की गई थी, वही भवोपपातगति के विषय में कहनी चाहिए ।
यह हुआ भवोपपातगति का निरूपण । ११००. से किं तं णोभवोववातगती?