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________________ सोलहवाँ प्रयोगपद] [२५३ [१०९६ प्र.] वह मनुष्यक्षेत्रोपपातगति कितने प्रकार की है ? [१०९६ उ.] (वह) दो प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार - १. सम्मूर्च्छिम-मनुष्यक्षेत्रोपपातगति और २. गर्भज-मनुष्यक्षेत्रोपपातगति । यह हुआ मनुष्यक्षेत्रोपपातगति का प्रतिपादन । १०९७. से किं तं देवखेत्तोववायगती ? देवखेत्तोववायगती चउव्विहा पण्णत्ता ।तं जहा- भवणवइ जाव वेमाणियदेवखेत्तोववायगती। से त्तं देवखेत्तोववायगती । [१०९७ प्र.] वह देवक्षेत्रोपपातगति कितने प्रकार की है ? [१०९७ उ.] (वह) चार प्रकार की कही गई है, वह इस प्रकार - १. भवनपतिदेवक्षेत्रोपपातगति, यावत् (२. वाणव्यन्तरदेवक्षेत्रोपपातगति, ३. ज्योतिष्कदेवक्षेत्रोपपातगति और) ४. वैमानिक देव क्षेत्रोपपातगति। यह हुआ देवक्षेत्रोपपातगति का निरूपण । १०९८. से किं तं सिद्धखेत्तोववायगती ? सिद्धखेत्तोववायगती, अणेगविहा पण्णत्ता । तं जहा- जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवयवाससपक्खि सपडिदिसिं सिद्धखेत्तोववायगती, जंबुद्दीवे दीवे चुल्लहिमवंत-सिहरिवासहरपव्वयसपक्खि सपडिदिसिं सिद्धखेत्तोववायगती, जंबुद्दीवे दीवे हेमवय-हेरनवयवाससपक्खिं सपडिदिसिं सिद्धखेत्तोववातगती, जंबुद्दीवे दीवे सद्दावति-वियडावतिवट्टवेयड्डसपक्खि सपडिदिसिं सिद्धखेत्तोववायगती, जंबुद्दीवे दीवे महाहिमवंत-रुप्पिवासहरपव्वयसपक्खि सपडिदिसिं सिद्धखेत्तोववातगती, जंबुद्दीवे दीवे हरिवासरम्मगवाससपक्खि सपडिदिसिं सिद्धखेत्तोववातगती, जंबुद्दीवे दीवे गंधावतीमालवंतपरियायवट्टवेयड्ढसपक्खि सपडिदिसिं सिद्धखेत्तोववातगती, जंबुद्दीवे दीवे पुव्वविदेहअवरविदेहसपक्खि सपडिदिसिं सिद्धखेत्तोववातगती, जंबुद्दीवे दीवे देवकुरूत्तरकुरुसपक्खि सपडिदिसिं सिद्धखेत्तोववायगती, लवणसमुद्दे सपक्खि सपडिदिसिं सिद्धखेत्तोववायगती, धायइसंडे दीवे पुरिमद्धपच्छिमद्धमंदरपव्वयस्स सपक्खि सपडिदिसिं सिद्धखेत्तोववातगती, कालोयसमुद्दे सपक्खि सपडिदिसिं सिद्धखेत्तोववातगती, पुक्खरवरदीवड्ड भरहे रवयवाससपक्खि सपडिदिसिं सिद्धखेत्तोववातगती, एवं जाव पुक्खरवरदीवड्डमंदरपव्वयसपक्खि सपडिदिसिं सिद्धखेत्तोववातगती। से त्तं सिद्धखेत्तोववातगती । से त्तं खेत्तोववातगती १ ।। [१०९८ प्र.] वह सिद्धक्षेत्रोपपातगति कितने प्रकार की है ? _[१०९८ उ.] सिद्धक्षेत्रोपपातगति अनेक प्रकार की कही गई है, वह इस प्रकार - जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, भरत और ऐरवत वर्ष (क्षेत्र) में सब दिशाओं में, सब विदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातगति होती है, जम्बूद्वीप नामक द्वीप में क्षुद्र हिमवान् और शिखरी वर्षधरपर्वत में सब दिशाओं में और विदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातगति होती है, जम्बूद्वीप नामक द्वीप में हैमवत और हैरण्यवत वर्ष में सब दिशाओं और विदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातगति
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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