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सोलहवाँ प्रयोगपद]
यावत् कार्मणशरीरप्रयोगगति ।
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१०८८. णेरइयाणं भंते ! कतिविहा पओगगती पण्णत्ता ?
गोयमा ! एक्कारसविहा पण्णत्ता । तं जहां- सच्चमणप्पओगगती एवं उवउज्जिऊण जस्स जइविहा तस्स ततिविहा भाणितव्वा जाव वेमाणियाणं ।
[१०८८ प्र.] भगवन् ! नैरयिकों की कितने प्रकार की प्रयोगगति कही गई हैं ?
[ १०८८ उ.] गौतम ! नैरयिकों की प्रयोगगति ग्यारह प्रकार की कही गई है, वह इस प्रकार हैसत्यमनःप्रयोगगति इत्यादि । इस प्रकार उपयोग करके (असुरकुमारों से लेकर) वैमानिक पर्यन्त जिसको जितने प्रकार की गति है, उसकी उतने प्रकार की गति कहनी चाहिए ।
१०८९. जीवा णं भंते ! किं सच्चमणप्पओगगती जाव कम्मगसरीरकायप्पओगगती ?
गोयमा ! जीवा सव्वे वि ताव होज्जा सच्चमणप्पओगगती वि, एवं तं चेव पुव्ववण्णियं भाणियव्वं भंगा तहेव जाव वेमाणियाणं । से त्तं पओगगती ।
[१०८९ प्र.] भगवन् ! जीव क्या सत्यमनः प्रयोगगति वाले हैं, अथवा यावत् कार्मणशरीरकायप्रयोगगतिक
हैं ?
[१०८९ उ.] गौतम ! जीव सभी प्रकार की गति वाले होते हैं, सत्यमन: प्रयोगगति वाले भी होते हैं, इत्यादि पूर्ववत् कहना चाहिए। उसी प्रकार (पूर्ववत्) (नैरयिकों से लेकर) वैमानिकों तक कहना चाहिए । यह हुई प्रयोगगति (की प्ररूपणा ।)
१०९०. से किं तं ततगती ?
ततगती जेणं जं गामं वा जाव सण्णिवेसं वा संपट्टिते असंपत्ते अंतरापहे वट्टति । से त्तं ततगती । [१०९० प्र.] ( भगवन् !) वह ततगति किस प्रकार की है ?
[१०९० उ.] (गौतम !) ततगति वह है, जिसके द्वारा जिस ग्राम यावत् सन्निवेश के लिए प्रस्थान किया हुआ व्यक्ति (अभी पहुँचा नहीं, बीच मार्ग में ही है। यह है ततगति ( का स्वरूप 1)
१०९१. से किं तं बंधणच्छेयणगती ?
बंधणच्छेयणगती जेणं जीवो वा सरीराओ सरीरं वा जीवाओ । से त्तं बंधणच्छेयणगती ।
[१०९१ प्र.] वह बन्धनछेदगति क्या है ?
[१०९१ उ.] बन्धनछेदनगति वह है, जिसके द्वारा जीव शरीर से (बन्धन तोड़कर बाहर निकलता है), अथवा शरीर जीव से (पृथक् होता है।) यह हुआ बन्धनछेदनगति ( का निरूपण)
१०९२. से किं तं उववायगती ?