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________________ दसमं चरिमपयं दसवां चरमपद आठ पृथ्वियों और लोकालोक की चरमाचरमवक्तव्यता ७७५. कति णं भंते । पुढवीओ पण्णत्ताओ? गोमा ! अट्ठ पुढवीओ पण्णत्ताओ । तं जहा - रयणप्पभा १ सक्करप्पभा २ वालुयप्पभा ३ पंकप्पा ४ धूमप्पा ५ तमप्पभा ६ तमतमप्पभा ७ ईसीपब्भारा ८ । [७७४ प्र.] भगवन्। पृथ्वियां कितनी कही गई हैं ? [ ७७४ उ.] गौतम । आठ पृथ्वियां कही गई हैं, वे इस प्रकार हैं- (१) रत्नप्रभा, (२) शर्कराप्रभा, (३) बालुकाप्रभा, (४) पंकप्रभा, (५) धूमप्रभा, (६) तमःप्रभा, (७) तमस्तमः प्रभा और (८) ईषत्प्राग्भारा । ७७५. इमा णं भंते । रयणप्पभा पुढवी किं चरिमा अचरिमा चरिमाई अचरिमाई चरिमंतप-देसा अचरिमंतपदेसा ? गोयमा । इमा णं रतणप्पभा पुढवी नो चरिमा नो अचरिमा नो चरिमाइं नो अचरिमाइं नो चरिमंतपदेसा नो अचरिमंतपदेसा, णियमा अचरिमं च चरिमाणि य चरिमंतपदेसा च अचरिमंतपएसा य । [७७५ प्र.] भगवत् । क्या यह रत्नप्रभापृथ्वी चरम है, अचरम है, अनेक चरमरूप (बहुवचनान्त चरम) है, अनेक अचरमरूप (बहुवचनान्त अचरम) है, चरमान्त बहुप्रदेशरूप है अथवा अचरमान्त बहुप्रदेशरूप है ? [७७५ उ.] गौतम। यह रत्नप्रभापृथ्वी न तो चरम है, न ही अचरम है, न अनेक चरमरूप और न अनेक अचरमरूप है तथा न चरमान्त अनेकप्रदेशरूप है और न अचरमान्त अनेक प्रदेशरूप है, किन्तु नियमत: (वह एक ही पृथ्वी) अचरम और अनेकचरमरूप है तथा चरमान्त अनेक प्रदेशरूप और अचरमान्त अनेक प्रदेशरूप I ७७६. एवं जाव अहेसत्तमा पुढवी । सोहम्मादी जाव अणुत्तरविमाणा एवं चेव । ईसीपब्भारा वि एवं चेव । लोगे वि एवं चेव । एवं अलोगे वि। [७७६] यों (रत्नप्रभावीपुथ्वी की तरह) यावत् अधः सप्तमी ( तमस्तम: प्रभा) पृथ्वी तक इसी प्रकार
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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