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[प्रज्ञापनासूत्र
भंग पाए जाते हैं और क्यों? इसके बाद परिमण्डल आदि ५ संस्थानों, उनके प्रभेदों, उनके प्रदेशों तथा उनकी अवगाहना और उनके चरमादि की चर्चा की गई है। तदनन्तर गति, स्थिति, भव, भाषा, श्वासोच्छ्वास, आहार, वर्ण, भाव गन्ध, रस और स्पर्श इन ११ बातों की अपेक्षा से चौवीस दण्डकों के जीवों के चरम-अचरम आदि का विचार किया गया है। अर्थात्-गति आदि की अपेक्षा से कौन जीव चरम है, अचरम है? इत्यादि विषयों पर गंभीर विचार किया गया है।'
१. (क) पण्णवणासुत्तं २ प्रस्तावना, पृ.८२-८४
(ख) प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्रांक २२९ से २४६ तक