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________________ सोलसमंपओगपयं सोलहवाँ प्रयोगपद प्रयोग और उसके प्रकार १०६८. कइविहे णं भंते ! पओगे पण्णत्ते ? गोयमा ! पण्णरसविहे पण्णत्ते । तं जहा- सच्चमणप्पओगे १ मोसमणप्पओगे २ सच्चामोसमणप्पओगे ३ असच्चामोसमणप्पओगे ४ एवं वइप्पओगे वि चउहा ८ ओरालियसरीरकायप्पओगे ९ ओरालियमीससरीरकायप्पओगे १० वेउव्वियसरीरकायप्पओगे ११ वेउव्वियमीससरीरकायप्पओगे १२ आहारगसरीरकायप्पओगे १३ आहारगमीससरीरकायप्पओगे १४ कम्मासरीरकायप्पओगे १५ । [१०६८ प्र.] भगवन् ! प्रयोग कितने प्रकार का कहा गया है ?, [१०६८ उ.] गौतम ! (प्रयोग) पन्द्रह प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकारे- (१) सत्यमनःप्रयोग, (२) असत्य (मृषा) मनःप्रयोग, (३) सत्य-मृषा (मिश्र) मनः प्रयोग, (४) असत्या-मृषा मनःप्रयोग, इसी प्रकार वचनप्रयोग, भी चार प्रकार का है- [(५) सत्यभाषाप्रयोग, (६) मृषाभाषाप्रयोग (७) सत्यामृषाभाषाप्रयोग और (८) असत्यामृषाभाषाप्रयोग], (९) औदारिकशरीरकाय-प्रयोग, (१०) औदारिकमिश्रशरीरकाय-प्रयोग, (११) वैक्रियशरीरकाय-प्रयोग, (१२) वैक्रियमिश्रशरीरकाय-प्रयोग, (१३) आहारकशरीरकाय-प्रयोग, (१४) • आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोग और (१५) कर्म-(कार्मण) शरीरकाय-प्रयोग। विवेचन - प्रयोग और उसके प्रकार- प्रस्तुत सूत्र में पन्द्रह प्रकार के प्रयोगों का नामोल्लेख किया गया है। प्रयोग की परिभाषा- 'प्र' उपसर्गपूर्वक युज् धातु से 'प्रयोग' शब्द निष्पन्न हुआ है। जिसके कारण प्रकर्षरूप से आत्मा क्रियाओं से युक्त- व्यापृत या सम्बन्धित हो, अथवा साम्परायिक और ईर्यापथ कर्म (आश्रव) से संयुक्त - सम्बद्ध हो, वह प्रयोग कहलाता है, अथवा प्रयोग का अर्थ है- परिस्पन्द क्रियाअर्थात्- आत्मा का व्यापार । __पन्द्रह प्रकार के प्रयोगों के अर्थ - (१) सत्यमनःप्रयोग- सन्त का अर्थ- मुनि अथवा सत् पदार्थ। ये दोनों मुक्ति-प्राप्ति के कारण हैं । इन दोनों के विषय में यथावस्थित वस्तुस्वरूप का चिन्तन करने में जो साधु (श्रेष्ठ) हो, वह 'सत्य' मन है। अथवा जीव सत् (स्वरूप से सत्) और असत् (पररूप से असत्) रूप है, देहमात्रव्यापी है, इत्यादि रूप से यथावस्थित वस्तुचिन्तन-परायण मन सत्यमन है। सत्यमन का प्रयोग अर्थात्
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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