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सोलहवाँ प्रयोगपद]
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+ इसमें से प्रथम प्रयोगगति तो वही है, जिसके १५ प्रकारों की चर्चा पहले की गई हैं। ततगति मंजिल पर
पहुँचने से पहले की सारी विस्तीर्ण गति को कहा गया है, फिर जीव और शरीर का बन्धन छूटने से होने वाली बन्धनछेदनगति, फिर नारकादि चार भवोपपातगति, क्षेत्रोपपातगति और नोभवोपपात (पुद्गलों
और सिद्धों की) गति का वर्णन है। अन्त में २७ प्रकार की आकाश-अवकाश से सम्बन्धित विहायोगति का वर्णन है। इन भेदों के वर्णन पर से गति की नाना प्रकार की विशेषताएं स्पष्ट प्रतीत होती हैं।'
१. (क) पण्णवणासुत्तं भाग. २ प्रस्तावना पृ. १०१ से १०३
(ख) पण्णवणासुत्तं (मूलपाठ), भा. १, पृ. २६१ से २७३ तक (ग) प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्रांक ३१९ से ३३० तक