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पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद : द्वितीय उद्देशक]
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में भावी भावेन्द्रियाँ होती हैं, उसकी पांच, दस, पन्द्रह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त भी होती हैं। जो भविष्य में एक वार फिर नरक में उत्पन्न होगा, उसकी पांच; जो दो वार उत्पन्न होगा, उसकी दस; तीन वार उत्पन्न होगा उसकी पन्द्रह; संख्यात, असंख्यात या अनन्त वार उत्पन्न होने वाले की संख्यात, असंख्यात या अनन्त भावी (पुरस्कृत) भावेन्द्रियाँ होती हैं। इसी प्रकार सर्वत्र समझ लेना चाहिए।
भावेन्द्रिय विषयक चार गम - जिस प्रकार द्रव्येन्द्रियों के विषय में नैरयिक, तिर्यग्योनिक, मनुष्य और देव सम्बन्धी ये चार गम कहे हैं, उसी प्रकार यहाँ भी चार गम समझ लेने चाहिए।
॥ पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद : द्वितीय उद्देशक समाप्त ॥
॥ पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद समाप्त ॥
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प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्रांक ३१७