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________________ [ प्रज्ञापनासूत्र [१०६६-१] (एक-एक नैरयिक की) पृथ्वीकायत्व से लेकर यावत् द्वीन्द्रियत्व के रूप में (अतीतादि भावेन्द्रियों का कथन ) द्रव्येन्द्रियों की तरह ( कहना चाहिए।) २२८] [ २ ] तेइंदियत्ते तहेव, णवरं पुरेक्खडा तिण्णि वा छ वा णव वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा । [१०६६-२] त्रीन्द्रियत्व के रूप में भी इसी प्रकार कहना चाहिए। विशेष यह कि (इनकी) पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ तीन, छह, नौ, संख्यात, असंख्यात या अनन्त होती हैं । [ ३ ] एवं चउरिंदियत्ते वि णवरं पुरेक्खडा चत्तारि वा अट्ठ वा बारस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा । [१०६६-३] इसी प्रकार चतुरिन्द्रियत्व रूप के विषय में भी कहना चाहिए। विशेष यह कि (इनकी) पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ चार, आठ, बारह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त हैं । १०६७. एवं एते चेव गमा चत्तारि णेयव्वा जे चेव दव्विंदिए । नवरं तइयगमे जाणियव्वा जस्स जइ इंदिया ते पुरेक्खडेसु मुणेयव्वा । चउत्थगमे जहेव दव्वेंदिया जाव सव्वट्ठसिद्धगदेवाणं सव्वट्टसिद्धगदेवत्ते केवतिया भाविंदिया अतीता ? णत्थि, बद्धेल्लगा संखेज्जा, पुरेक्खडा णत्थि ॥ १२ ॥ ॥ बीओ उद्देस समत्तो ॥ ॥ पण्णवणाए भगवतीए पनरसमं इंदियपयं समत्तं ॥ [१०६७] इस प्रकार ये (द्रव्येन्द्रियों के विषय में कथित) ही चार गम यहाँ समझने चाहिए । विशेषतृतीय गम (मनुष्य सम्बन्धी अभिलाप) में जिसकी जितनी भावेन्द्रियाँ हों, (वे) उतनी पुरस्कृत भावेन्द्रियों में समझनी चाहिए। चतुर्थ गम (देवसम्बन्धी अभिलाप) में जिस प्रकार सर्वार्थसिद्ध की सर्वार्थसिद्धत्व के रूप में कितनी भावेन्द्रियाँ अतीत हैं ?' नहीं हैं ।' बद्ध भावेन्द्रियाँ संख्यात हैं, पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ नहीं हैं, यहाँ तक कहना चाहिए । ॥ १२ ॥ विवेचन - बारहवाँ भावेन्दियद्वार - प्रस्तुत बारह सूत्रों (सू. १०५६ से १०६७ तक) में नैरयिक से लेकर सर्वार्थसिद्ध तक की एकत्व - बहुत्व की अपेक्षा से तथा नैररिकत्व से सर्वार्थसिद्धत्व तक के रूप में अतीत, बद्ध एवं पुरस्कृत इन्द्रियों का प्ररूपण किया है । नारक की नारकत्वरूप में पुरस्कृत ( भावी) भावेन्द्रियाँ - किसी की होती हैं, किसी की नहीं। जो नारक नरक से निकलकर अन्य गति मे उत्पन्न होकर पुन: नरक में उत्पन्न होने वाला है, उसकी नरकपन में भावी भावेन्दियाँ होती हैं, किन्तु जिस जीव का वर्तमान नारकीभव अन्तिम हैं अर्थात्- जो नरक से निकल कर फिर कभी नरक में उत्पन्न नहीं होगा, उसकी नारकत्वरूप में भावी भावेन्द्रियाँ नहीं होती हैं। जिसकी नारकरूप
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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