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पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद : द्वितीय उद्देशक]
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१०६४. णेरइयाणं भंते ! केवतिया भाविंदिया अतीता ? गोयमा ! अणंता । केवतिया बद्धेल्लगा? असंखेजा। केवतिया पुरेक्खडा ? अणंता ।
एवं जहा दव्विदिएसु पोहत्तेणं दंडओ तहा भाविंदिएसु वि पोहत्तेणं दंडओ भाणियव्वो, णवरं वणस्सइकाइयाणं बद्धेल्लगा वि अणंता ।
[१०६४ प्र.] भगवन् ! (बहुत-से) नैरयिकों की अतीत भावेन्द्रियाँ कितनी हैं ? [१०६४ उ.] गौतम ! वे अनन्त हैं । [प्र.] (भगवन् ! उनकी) बद्ध भावेन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] (वे) असंख्यात हैं।
[प्र.] भगवन् ! पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ कितनी हैं ? . [उ.] गौतम ! वे अनन्त हैं ।
इसी प्रकार जैसे- द्रव्येन्द्रियों में पृथक्त्व (बहुवचन से) दण्डक कहा है, इसी प्रकार भावेन्द्रियों में भी पृथक्त्व (बहुवचन से) दण्डक कहना चाहिए। विशेष यह है कि वनस्पतिकायिकों की बद्ध भावेन्द्रियाँ अनन्त
हैं।
१०६५. एगमेगस्स णं भंते ! णेरइयस्स णेरइयत्ते केवइया भाविंदिया अतीता?
गोयमा ! अणंता, बद्धेल्लगा पंच, पुरेक्खडा कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽत्थि पंच वा दस वा पण्णरस वा संखेज्जा वा असंखेजा वा अणंता वा । एवं असुरकुमारत्ते जाव थणियकुमारत्ते, णवरं बद्धेल्लगा णस्थि ।
[१०६५ प्र.] भगवन् ! एक-एक नैरयिक की नैरयिकत्व के रूप में कितनी अतीत भावेन्द्रियाँ हैं ? [१०६५ उ.] गौतम ! वे अनन्त हैं ।
इसकी बद्ध भावेन्द्रियाँ पाँच हैं और पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती हैं। जिसकी होती हैं, उसकी पांच, दस, पन्द्रह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त होती हैं। ___इसी प्रकार (एक-एक नैरयिक की) असुरकुमारत्व से लेकर यावत् स्तनितकुमारत्व के रूप में (अतीतादि भावेन्द्रियों का कथन करना चाहिए।) विशेष यह है कि इसकी बद्ध भावेन्द्रियाँ नहीं हैं।
१०६६.[१] पुढविक्काइयत्ते जाव बेइंदियत्ते जहा दव्विंदिया ।