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[ प्रज्ञापनासूत्र
प्रभूत असंख्यातकाल या अनन्तकाल तक संसार में नहीं रहते। इस कारण उनकी आगामी द्रव्येन्द्रियाँ संख्यात ही कही हैं, असंख्यात या अनन्त नहीं।
सर्वार्थसिद्धदेव की पुरस्कृत इन्द्रियाँ- सर्वार्थसिद्धविमान के देव नियमतः अगले भव में सिद्ध होते हैं, इस कारण उनकी आगामी द्रव्येन्द्रियाँ ८ ही कही हैं ।
अनेक मनुष्यों की बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ - कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात होती हैं। इसका कारण यह है कि किसी समय सम्मूछिम मनुष्य सर्वथा नहीं होते, तब मनुष्यों की बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ संख्यात होती हैं, क्योंकि गर्भज मनुष्य संख्यात ही होते हैं, किन्तु जब सम्मूछिम मनुष्य भी होते हैं, तब बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ असंख्यात होती हैं।
नारक की नारकभव अवस्था में भावी द्रव्येन्द्रियाँ - किसी नारक की भविष्यत्कालिक द्रव्येन्द्रियाँ होती हैं किसी की नहीं होती हैं। जो नारक नरक से निकलकर फिर कभी नारक पर्याय में उत्पन्न नहीं होगा, उसकी भावी द्रव्येन्द्रियाँ नहीं होती हैं । जो नारक कभी पुनः नारक में उत्पन्न होगा, उसकी होती हैं। अगर वह एक ही वार उत्पन्न होने वाला हो तो उसकी आठ, दो वार नारकों में उत्पन्न होने वाला हो तो सोलह, तीन वार उत्पन्न होने वाला हो तो चौवीस, संख्यात वार उत्पन्न होने वाला हो तो संख्यात और असंख्यात या अनन्त वार उत्पन्न होने वाला हो तो भावी द्रव्येन्द्रियाँ भी क्रमशः असंख्यात या अनन्त होती हैं।
___ एक नारक की पृथ्वीकायपने में अतीत बद्ध इन्द्रियाँ - एक नारक की अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त होती हैं । बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ बिलकुल नहीं होती हैं, क्योंकि नरकभव में वर्तमान नारक का पृथ्वीकायिक के रूप में वर्तमान होना संभव नहीं है, इस कारण बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ नहीं होती हैं। ___विजयादि पांच अनुत्तरौपपातिकदेवों की अतीतादि द्रव्येन्द्रियाँ - जो जीव एक वार विजयादि विमानों में उत्पन्न हो जाता हैं, उसका फिर से नारकों, तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों, वाणव्यन्तरों और ज्योतिष्कों में जन्म नहीं होता। अत: उनमें नारकादि संबंधी द्रव्येन्द्रियाँ सम्भव नहीं हैं। सर्वार्थसिद्ध देवों के रूप में अतीत और बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ नहीं होती हैं। नारकजीव अतीतकाल में कभी सर्वार्थसिद्ध जीव हुआ नहीं है। अतः सर्वार्थसिद्धदेवत्व रूप में उसकी द्रव्येन्द्रियाँ असम्भव हैं । सर्वार्थसिद्ध विमान में एक वार उत्पन्न होने के पश्चात् मनुष्यभव पाकर जीव सिद्धि प्राप्त कर लेता है।
वनस्पतिकायिकों की विजयादि के रूप में भावी द्रव्येन्द्रियाँ - अनन्त हैं, क्योंकि वनस्पतिकायिक जीव अनन्त होते हैं ।
बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ - मनुष्य और सर्वार्थसिद्ध देवों को छोड़कर सभी की स्वस्थान में बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ असंख्यात जाननी चाहिए। परस्थान में बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ होती नहीं हैं। क्योंकि जो जीव जिस भव में वर्तमान है, वह उसके अतिरिक्त परभव में वर्तमान नहीं हो सकता । वनस्पतिकायिकों की बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ असंख्यात होती