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पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद: द्वितीय उद्देशक]
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आठ और मनुष्यभवसम्बन्धी आठ, यों कुल मिलकर सोलह होंगी। जो नारक नरक से निकलकर पंचेन्द्रियतिर्यच होगा, तदनन्तर एकेन्द्रियकाय में उत्पन्न होगा और फिर मनुष्यभव पाकर सिद्ध हो जाएगा, उसकी पंचेन्द्रियतिर्यचभव की आठ, एकेन्द्रियभव की एक और मनुष्यभव की आठ, यों सब मिलकर सत्तरह द्रव्येन्द्रियाँ होंगी। जो नारक संख्यातक
र के परिभ्रमण करेगा. उसकी संख्यात. जो असंख्यात काल तक भवभ्रमण करेगा उसकी असंख्यात और जो अनन्तकाल तक संसार में परिभ्रमण करेगा, उसकी अनन्त पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ होंगी।
मनुष्य की आगामी ( पुरस्कृत) द्रव्येन्द्रियाँ - किसी मनुष्य की होती हैं और किसी की नहीं भी होती हैं। जो मनुष्य उसी भव से सिद्ध हो जाते हैं, उनकी नहीं होती हैं, शेष मनुष्य की होती हैं तो वे आठ, नौ, संख्यात अथवा अनन्त होती हैं। वह यदि अनन्तरभव में पुनः मनुष्य होकर सिद्ध हो जाता है तो उसकी आठ द्रव्येन्द्रियाँ होती हैं। जो मनुष्य पृथ्वीकायादि में एक भव के पश्चात् मनुष्य होकर सिद्धिगामी होता है, उसकी ९ इन्द्रियाँ होती हैं। शेष भावना पूर्ववत् समझनी चाहिए।
असुरकुमारों की पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ - असुरकुमार के भव से निकलने के पश्चात् मनुष्यत्व को प्राप्त कर जो सिद्ध होता है, उसकी पुरस्कत द्रव्येन्द्रियाँ ८ होती हैं। ईशानपर्यन्त एक-एक असुरकुमारादि पृथ्वीकाय, अप्काय एवं वनस्पतिकाय में उत्पन्न होता है, वह अनन्तर भव में पृथ्वीकायादि किसी एकेन्द्रिय में जाकर तदनन्तर मनुष्यभव प्राप्त करके सिद्ध हो जाता है, उसके नौ पुरस्कृत इन्द्रियाँ होती हैं । संख्यातादि की भावना पूर्ववत् समझनी चाहिए।
पृथ्वी-अप्-वनस्पतिकाय की पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ - पृथ्वीकायादि मर कर अनन्तर मनुष्यों में उत्पन्न होकर सिद्ध होते हैं, उनमें जो अनन्तरभव में मनुष्यत्व को प्राप्त करके सिद्ध हो जाता है, उसकी मनुष्यभव सम्बन्धी आठ इन्द्रियाँ होगी । जो पृथ्वीकायादि अनन्तर एक पृथ्वीकायादि भव पाकर तदनन्तर मनुष्य होकर सिद्ध हो जाते हैं, उनकी ९ इन्द्रियाँ होंगी।
तेजस्कायिक-वायुकायिक एवं विकलेन्द्रिय की पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ - तेजस्कायिक और वायुकायिक मरकर तदनन्तर मनुष्यभव नहीं प्राप्त करते । द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीव अनन्तर आगामी भव में मनुष्यत्व तो प्राप्त कर सकते हैं, किन्तु सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकते, अतएव उनकी जघन्य नौ-नौ इन्द्रियाँ कहनी चाहिए। शेष प्ररूपणा पूर्वोक्तानुसार समझनी चाहिए।
सनत्कुमारादि की पुरस्कृत इन्द्रियाँ - सनत्कुमारादि देव च्यव करके पृथ्वीकायादि में उत्पन्न नहीं होते, किन्तु पंचेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं । अतएव उनका कथन नैरयिकों की तरह समझना चाहिए।
विजयादि चार की पुरस्कृत इन्द्रियाँ - जो अनन्तरभव में ही मनुष्यभव प्राप्त करके सिद्ध होगा, उसकी ८ इन्द्रियाँ होती हैं। जो एक वार मनुष्य होकर पुनः मनुष्यभव पाकर सिद्ध होगा, उसके १६ इन्द्रियाँ होती है। जो बीच में एक देवत्व का अनुभव करके मनुष्य होकर सिद्धिगामी हो तो उसके २४ इन्द्रियाँ होती हैं। मनुष्यभव में आठ, देवभव में ८ और पुनः मनुष्यभव में आठ, यों कुल २४ इन्द्रियाँ होंगी। विजयादि चार विमानगत देव