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[प्रज्ञापनासूत्र
णस्थि । केवतिया बद्धेल्लगा? संखेजा। केवइया पुरेक्खडा? णत्थि । ११ दारं ॥ [१०५५-५ प्र.] भगवन् ! सर्वार्थसिद्ध देवों की सर्वार्थसिद्धदेवत्व रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [१०५५-५ उ.] गौतम ! (वे) नहीं हैं । [प्र.] बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] (गौतम ! वे) संख्यात हैं । [प्र.] (उनकी) पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] (गौतम ! वे) नहीं है। ॥११ द्वार ॥
विवेचन - चौवीस दण्डकों की अतीत, बद्ध, पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों की प्ररूपणा - प्रस्तुत ग्यारहवें द्वार के अन्तर्गत नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक समस्त जीवों की अतीत, बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों की एकत्व, बहुत्व आदि विभिन्न पहलुओं से प्ररूपणा की गई है।
अतीतादि का स्वरूप- अतीत का अर्थ - भूतकालीन द्रव्येन्द्रियाँ, बद्ध का अर्थ है- वर्तमान में प्राप्त द्रव्येन्द्रियाँ एवं पुरस्कृत यानी आगामीकाल में प्राप्त होने वाली द्रव्येन्द्रियाँ ।
चार पहलुओं से अतीतादि द्रव्येन्द्रियों की प्ररूपणा - (१) एक-एक नैरयिक से लेकर एक-एक सर्वार्थसिद्धदेव तक की अतीत, बद्ध, पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों की प्ररूपणा, (२) बहुत-से नैरयिकों से लेकर बहुतसे सर्वार्थसिद्ध देवों तक की अतीतादि द्रव्येन्द्रियों की प्ररूपणा, (३) एक-एक नैरयिक से लेकर सर्वार्थसिद्ध देवों तक की नैरयिकत्व से लेकर सर्वार्थसिद्धत्व के रूप के अतीतादि द्रव्येन्द्रियों की प्ररूपणा और (४) बहुतसे नैरयिकों से सर्वार्थसिद्धत्व देवों तक की नैरयिकत्व से सर्वार्थसिद्धदेवत्व के रूप में अतीतादि द्रव्येन्द्रियों की प्ररूपणा ।
एक नैरयिक की पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ - एक-एक जीवविषयक पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ आठ, सोलह, सत्रह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त बताई गई हैं, वे इस प्रकार से हैं - जो नारक अगले ही भव में मनुष्यपर्याय प्राप्त करके सिद्ध हो जाएगा, उसकी मनुष्यभवसम्बन्धी आठ ही द्रव्येन्द्रियाँ होंगी। जो नारक नरक से निकल पंचेन्द्रियतिर्यचयोनि में उत्पन्न होगा और फिर मनुष्यगति प्राप्त करके सिद्धि प्राप्त करेगा, उसकी तिर्यचभवसम्बन्धी