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________________ पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद : द्वितीय उद्देशक] [२२१ [प्र.] (उनकी) बद्ध (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ? [उ.] (गौतम !) नहीं हैं। [प्र.] (उनकी) पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ? [उ.] (गौतम !) नहीं हैं। [२] एवं मणूसवजं जाव गेवेजगदेवत्ते ।। [१०५५-२] मनुष्य को छोड़ कर यावत् ग्रैवेयकदेवत्व तक के रूप में भी इसी प्रकार (इनकी अतीतादि द्रव्येन्द्रियों की वक्तव्यता कहनी चाहिए ।) [३] मणूसत्ते अतीता अणंता, बद्धेल्लगा णत्थि, पुरेक्खडा संखेजा। [१०५५-३] (इनकी) मनुष्यत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं, बद्ध नहीं हैं, पुरस्कृत संख्यात [४] विजय-वेजयंत-जयंतापराजियदेवत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीता ? संखेज्जा। केवतिया बद्धेल्लगा? नत्थि । केवतिया पुरेक्खडा? णत्थि । [१०५५-४ प्र.] विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देवत्व के रूप में इनकी अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं? [१०५५-४ उ.] (वे) संख्यात हैं । [प्र.] (इनकी) बद्ध (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ? [उ.] (गौतम !) नहीं हैं । [प्र.] उनकी पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ? [उ.] (गौतम !) नहीं हैं। [५] सव्वट्ठसिद्धगदेवाणं भंते ! सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीता ?
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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