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________________ २२० ] [प्र.] (उनकी) पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी है ? [उ.] ( गौतम ! वे) असंख्यात हैं ? [ ३ ] एवं जाव गेवेज्जगदेवत्ते । सट्ठाणे अतीता असंखेजा । केवतिया बद्धेल्लगा ? असंखेज्जा केवतिया पुरेक्खडा ? असंखेज्जा । [१०५४-३] (विजयादि चारों की) सौधर्मादि देवत्व से लेकर यावत् ग्रैवेयकदेवत्व के रूप में अतीतादि द्रव्येन्द्रियों की वक्तव्यता इसी प्रकार है। इनकी स्वस्थान में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ असंख्यात हैं । [प्र.] बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] असंख्यात हैं । [प्र.] (उनकी) पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] (गौतम ! पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ) असंख्यात हैं । [ ४ ] सव्वट्टसिद्धगदेवत्ते अतीता णत्थि, बद्धेल्लगा णत्थि, पुरेक्खडा असंखेज्जा । [१०५४-४] (इन चारों देवों) की सर्वार्थसिद्धदेवत्व रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं, बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ भी नहीं हैं, किन्तु पुरस्कृत असंख्यात हैं । १०५५. [ १ ] सव्वट्टसिद्धगदेवाणं भंते ! णेरइयत्ते केवतिया दव्वेंदिया अतीता ? गोयमा ! अनंता । केवतिया बद्वेल्लगा ? णत्थि । [ प्रज्ञापनासूत्र केवतिया पुरेक्खडा ? णत्थि । [१०५५-१ प्र.] भगवन् ! सर्वार्थसिद्ध देवों की नैरयिकत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [१०५५ - १ उ.] गौतम ! (वे) अनन्त हैं ।
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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