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[प्र.] (उनकी) पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी है ?
[उ.] ( गौतम ! वे) असंख्यात हैं ?
[ ३ ] एवं जाव गेवेज्जगदेवत्ते । सट्ठाणे अतीता असंखेजा ।
केवतिया बद्धेल्लगा ?
असंखेज्जा
केवतिया पुरेक्खडा ?
असंखेज्जा ।
[१०५४-३] (विजयादि चारों की) सौधर्मादि देवत्व से लेकर यावत् ग्रैवेयकदेवत्व के रूप में अतीतादि द्रव्येन्द्रियों की वक्तव्यता इसी प्रकार है। इनकी स्वस्थान में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ असंख्यात हैं ।
[प्र.] बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ?
[उ.] असंख्यात हैं ।
[प्र.] (उनकी) पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ?
[उ.] (गौतम ! पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ) असंख्यात हैं ।
[ ४ ] सव्वट्टसिद्धगदेवत्ते अतीता णत्थि, बद्धेल्लगा णत्थि, पुरेक्खडा असंखेज्जा ।
[१०५४-४] (इन चारों देवों) की सर्वार्थसिद्धदेवत्व रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं, बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ
भी नहीं हैं, किन्तु पुरस्कृत असंख्यात हैं ।
१०५५. [ १ ] सव्वट्टसिद्धगदेवाणं भंते ! णेरइयत्ते केवतिया दव्वेंदिया अतीता ?
गोयमा ! अनंता ।
केवतिया बद्वेल्लगा ?
णत्थि ।
[ प्रज्ञापनासूत्र
केवतिया पुरेक्खडा ?
णत्थि ।
[१०५५-१ प्र.] भगवन् ! सर्वार्थसिद्ध देवों की नैरयिकत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [१०५५ - १ उ.] गौतम ! (वे) अनन्त हैं ।