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________________ पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद : द्वितीय उद्देशक] [२१५ [४] एगमेगस्स णं भंते ! सव्वट्ठसिद्धगदेवस्स सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते केवतिया दक्विंदिया अतीया? गोयमा ! णत्थि । केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा ! अट्ठ। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! णत्थि । [१०४७-४ प्र.] भगवन् ! एक-एक सर्वार्थसिद्धदेव की सर्वार्थसिद्धदेवत्वरूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [१०४७-४] गौतम ! नहीं है । [प्र.] (उसकी) बद्ध (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! (वे) आठ हैं। [प्र.] उसकी पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! (वे) नहीं है । १०४८.[१] णेरइयाणं भंते ! णेरइयत्ते केवइया दव्विंदिया अतीया ? गोयमा ! अणंता । केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा ! असंखेजा। केवतिया पुरेक्खा ? गोयमा ! अणंता । [१०४८-१ प्र.] भगवन् ! (बहुत-से) नैरयिकों की नारकत्वरूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी है ? [१०४८-१ उ.] गौतम ! (वे) अनन्त हैं । [प्र.] (उनकी) बद्ध (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! (वे) असंख्यात हैं। [प्र.] (उनकी) पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ?
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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