________________
२१६ ]
हैं ?)
[उ.] गौतम ! (वें) अनन्त हैं ।
[ २ ] णेरइयाणं भंते ! असुरकुमारत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीता ?
गोयमा ! अनंता ।
केवतिया बद्धेल्लगा ?
गोयमा ! णत्थि |
केवतिया पुरेक्खडा ?
गोयमा ! अनंता ।
[१०४८-२ प्र.] भगवन् ! (बहुत-से) नैरयिकों की असुरकुमारत्वरूप में (अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी
[१०४८-२] गौतम ! (वे) अनन्त हैं ।
[प्र.] (उनकी) बद्ध (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ?
[उ.] गौतम ! नहीं हैं ।
[ प्रज्ञापनासूत्र
[प्र.] (उनकी) पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ?
[उ.] गौतम ! अनन्त हैं ।
[ ३ ] एवं जाव गेवेज्जगदेवत्ते ।
[१०४८-३] (बहुत-से नारकों की) नागकुमारत्व से लेकर यावत् ग्रैवेयकदेवत्रूप में (अतीत बद्ध पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों की वक्तव्यता भी इसी प्रकार (पूर्ववत्) जाननी चाहिए ।)
[ ४ ] णेरड्याणं भंते ! विजय- वेजयंत- जयंत अपराजियदेवत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीता ?
णत्थि ।
केवतिया बद्वेल्लगा ?
णत्थि ।
केवतिया पुरेक्खडा ?
असंखेजा ।
[१०४८-४ प्र.] भगवन् ! ( बहुत-से ) नैरयिकों की विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देवत्व के