________________
२१४]
[प्रज्ञापनासूत्र
[उ.] गौतम ! नहीं हैं। [२] एवं मणूसवजं जाव गेवेजगदेवत्ते । णवरं मणूसत्ते अतीया अणंता । केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा ! णत्थि । केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! अट्ठ ।
[१०४७-२] इसी प्रकार (असुरकुमारत्व से लेकर) मनुष्यत्व को छोड़कर यावत् ग्रैवेयकदेवत्वरूप में (एक-एक सर्वार्थसिद्धदेव की) (अतीतादि द्रव्येन्द्रियों की वक्तव्यता समझनी चाहिए।) विशेष यह है कि (एक-एक सर्वार्थसिद्धदेव की) मनुष्यत्वरूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं ।
[प्र.] बद्ध (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! (वे) नहीं हैं । [प्र.] पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! (वे) आठ हैं ।
[३] विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवत्ते अतीया कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽस्थि अट्ठ।.
केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा ! णत्थि । केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! णत्थि ।
[१०४७-३] (एक-एक सर्वार्थसिद्धदेव की) विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजितदेवत्वरूप में अतीत (द्रव्येन्द्रियाँ) किसी की हैं और किसी की नहीं हैं । जिसकी होती हैं , वे आठ होती हैं।
[प्र.] (उसकी) बद्ध (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! नहीं है। [प्र.] कितनी पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) हैं ? [उ.] गौतम ! नहीं हैं।