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पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद : द्वितीय उद्देशक ]
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दव्विंदिया अतीया ?
गोयमा ! णत्थि । केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा ! त्थि । केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽत्थि अट्ठ ।
[१०४६-८ प्र.] भगवन् ! एक-एक विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपरजित देव की सर्वार्थसिद्धदेवत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? .
[१०४६-८ उ.] गौतम ! (वे) नहीं हैं। [प्र.] बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! (वे) नहीं हैं। [प्र.] पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती हैं । जिसकी होती हैं, वे आठ होती हैं । १०४७.[१] एगमेगस्स णं भंते ! सव्वट्ठसिद्धगदेवस्स णेरइयत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीया ? गोयमा ! अणंता । केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा ! णत्थि । केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! णत्थि । [१०४७-१ प्र.] भगवन् ! एक -एक सर्वार्थसिद्धदेव की नारकपन में कितनी द्रव्येन्द्रियाँ अतीत हैं ? - [१०४७-१ उ.] गौतम ! अनन्त हैं। [प्र.] (उसकी) बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! नहीं हैं। [प्र.] कितनी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ हैं ?