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[प्रज्ञापनासूत्र
आठ होती हैं ?
[प्र.] (उसकी) बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी होती हैं ? [उ.] गौतम ! नहीं होती हैं । [प्र.] (भगवन् ! उसकी) पुरस्कृत द्रव्येद्रिव्याँ कितनी होती हैं? [उ.] गौतम ! किसी की होती हैं किसी की नहीं होती हैं। जिसकी होती हैं, उसकी आठ होती हैं । १०४४. वाणमंतर-जोतिसिए जहा णेरइए (सु. १०४१)।
[१०४४] वाणव्यन्तर और ज्योतिष्क देव की तथारूप में अतीत, बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों की वक्तव्यता (सू. १०४१ में उल्लिखित) नैरयिक की वक्तव्यता के समान कहना चाहिए ।
१०४५.[१] सोहम्मगदेवे वि जहा णेरइए (सु. १०४१)। णवरं सोहम्मगदेवस्स विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियत्ते केवतिया दक्विंदिया अतीता ? गोयमा ! कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽस्थि अट्ठ । केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा ! णत्थि । केवतिया पुरेक्खडा?
गोयमा ! कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽथि अट्ठ वा सोलस वा । सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते जहा णेरइयस्स ।
[१०४५-१] सौधर्मकल्प देव की (तथारूप में अतीतादि द्रव्येन्द्रियों की वक्तव्यता) भी (सू.१०४१ में अंकित) नैरयिक की (वक्तव्यता के समान कहना चाहिए ।)
[प्र.] विशेष यह है कि सौधर्मदेव की विजय, वैजयन्त जयन्त और अपराजितदेवत्व के रूप में कितनी अतीत द्रव्येन्द्रियाँ हैं ?
[उ.] गौतम ! किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती हैं । जिसकी होती हैं, उसकी आठ होती हैं । [प्र.] (उसकी) बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! नहीं हैं। [प्र.] (उसकी) पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती हैं । जिसकी होती हैं, आठ या सोलह होती हैं।