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पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद : द्वितीय उद्देशक]
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में उल्लिखित) अतीतादि द्रव्येन्द्रियों के समान समझना चाहिए ।
[५] एगमेगस्स णं भंते ! विजय-वेजयंत-जयंताऽपराजियदेवत्ते केवइया दव्विंदिया अतीया ? गोयमा ! कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽत्थि अट्ठ वा सोलस वा । केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा ! णत्थि । केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽस्थि अट्ठ वा सोलस वा ।
[१०४३-५ प्र.] भगवन् ! एक-एक मनुष्य की विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजितदेवत्व के रूप में कितनी अतीत द्रव्येन्द्रियाँ हैं ? ___ [१०४३-५ उ.].गौतम ! किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती हैं । जिसकी होती हैं, उसकी आठ या सोलह होती हैं।
[प्र.] बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! नहीं हैं। [प्र.] पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ?
[उ.] गौतम ! किसी की होती हैं और किसी की नहीं होती । जिसकी होती हैं, उसकी आठ या सोलह होती हैं ।
[६] एगमेगस्स णं भंते ! मणूसस्स सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीता ? गोयमा ! कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽत्थि अट्ठ । केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा ! णत्थि । केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽस्थि अट्ठ । [१०४३-६ प्र.] भगवन् ! एक-एक मनुष्य की सर्वार्थसिद्धदेवत्वरूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [१०४३-६ उ.] गौतम ! (वे) किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती हैं । जिसकी होती हैं, उसकी