________________
२०८]
[प्रज्ञापनासूत्र
[प्र.] (भगवन् ! उसकी) पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ।
[उ.] गौतम! किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती, जिसकी होती हैं, उसकी आठ, सोलह, चौवीस, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होती हैं ।
[२]एवंजाव पंचेंदियतिरिक्खजोणियत्ते।णवरं एगिदिय-विगलिंदिएसुजस्स जत्तिया पुरेक्खडा तस्स तत्तिया भाणियव्वा । - [१०४३-२] इसी प्रकार यावत् पंचेन्द्रियतिर्यञ्चपर्याय में (अतीत, बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों के विषय में ) कहना चाहिए । विशेष यह है कि एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रियों में से जिसकी जितनी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कही हैं, उसकी उतनी कहनी चाहिए ।
[३] एगमेगस्स णं भंते ! मणूसस्स मणूसत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीया ? गोयमा ! अणंता । केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा ! अट्ठ। केवतिया पुरेक्खडा?
कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽस्थि अट्ठ वा सोलस वा चउवीसा वा संखेजा वा असंखेजा वा अणंता वा।
[१०४३-३ प्र.] भगवन् ! मनुष्य की मनुष्यपर्याय में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [१०४३-३ उ.] गौतम ! अनन्त हैं। . [प्र.] बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! (वे) आठ हैं। [प्र.] पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी होती है ?
[उ.] गौतम (वे) किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती, जिसकी होती हैं, उसकी आठ, सोलह, चौवीस, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होती हैं ?
[४] वाणमंतर-जोतिसिय जाव गेवेजगदेवत्ते जहा णेरइयत्ते ।
[१०४३-४] (एक-एक मनुष्य की) वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और (सौधर्म से लेकर) यावत् ग्रैवेयक देवत्व के रूप में (अतीत, बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों के विषय में) नैरयिकत्व रूप में उक्त (सू.१०४३-१