________________
पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद : द्वितीय उद्देशक ]
हैं।
[२०७
[उ.] गौतम ! (वे) नहीं हैं ।
[प्र.] भगवन् ! पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ?
[उ.] गौतम ! किसी की होती हैं, किसी नहीं होती, जिसकी होती हैं, उसकी आठ या सोलह होती
[९] सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते अतीया णत्थि; बद्धेल्लगा णत्थि; पुरेक्खडा कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽत्थि अट्ठ |
[१०४१-१] सर्वार्थसिद्ध-देवपन में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं, बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ भी नहीं हैं, पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती हैं। जिसकी होती हैं, उसकी आठ होती हैं ।
१०४२. एवं जहा णेरइयदंडओ णीओ तहा असुरकुमारेण वि णेयव्वो जाव पंचेंदियतिरिक्खजोंणिणं । वरं जस्स सट्टाणे जति बद्धेल्लगा तस्स तइ भाणियव्वा ।
[१०४२.] जैसे (सू. १०४१-१ से ९ में) नैरयिक ( की नैरपिकादि त्रिविधरूप में पाई जान वाली अतीत, बद्ध एवं पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों) के विषय में दण्डक कहा, उसी प्रकार असुरकुमार के विषय में भी पंचेन्द्रियतियेञ्चयोनिक तक के दण्डक कहने चाहिए । विशेष यह है कि जिसकी स्वस्थान में जितनी बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कही हैं, उसकी उतनी कहनी चाहिए ।
१०४३. [ १ ] एगमेगस्स णं भंते ! मणूसस्स णेरइयत्ते केवतिया दव्वेंदिया अतीया ?
गोयमा ! अनंता ।
केवतिया बद्धेल्लगा ?
गोयमा ! णत्थि |
केवतिया पुरेक्खडा ?
गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि, जस्स ंत्थि अट्ठ वा सोलस वा चडवीसा वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा ।
[१०४३-१ प्र.] भगवन् ! एक-एक मनुष्य की नैरयिकपन में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ?
[१०४३-१ उ.] गौतम ! (वे) अनन्त हैं ।
[प्र.] (भगवन् ! उसकी) बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ?
[उ.] गौतम ! नहीं हैं ।