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________________ २०६] [प्रज्ञापनासूत्र के विषय में असुरकुमारपर्याय में जिस प्रकार कहा गया है, उसी प्रकार कहना चाहिए ।) [६] मणूसत्ते वि एवं चेव ।णवरं केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! अट्ट वा सोलस वा चउवीसा वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा । सव्वेसिं सवजाणं पुरेक्खडा मणूसत्ते कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि त्ति एवं ण वुच्चति । [१०४१-६] मनुष्यपर्याय में भी इसी प्रकार अतीतादि द्रव्येन्द्रियों के विषय में कहना चाहिए। [प्र.] विशेष यह है कि पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! आठ, सोलह, चौवीस, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होती हैं । मनुष्यों को छोड़ कर शेष सबकी (तेईस दण्डकों के जीवों की) पुरस्कृत (भावी) द्रव्येन्द्रियाँ मनुष्यपन में किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती, ऐसा नहीं कहना चाहिए । [७] वाणमंतर-जोइसिय-सोहम्मग जाव गेवेजगदेवत्ते अतीया अणंता ; बद्धेल्लगा णत्थि ; पुरेक्खडा कस्सइ अत्थि, कस्सइ णत्थि जस्सऽस्थि अट्ठ वा सोलस वा चउवीसा वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा। . [१०४१-७] (एक-एक नैरयिक की) वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क, सौधर्म से लेकर ग्रैवेयक देव तक के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं, बद्ध नहीं हैं और पुरस्कृत इन्द्रियाँ किसी की हैं, किसी की नहीं है। जिसकी हैं, उसकी आठ, सोलह, चौवीस, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त हैं। [८] एगमेगस्सणं भंते !णेरइयस्स विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीया ?.. गोयमा ! णत्थि । केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा ! णत्थि । केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽथि अट्ठ वा सोलस वा । - [१०४१-८] भगवन् ! एक नैरयिक की विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित-देवत्व के रूप में कितनी अतीत द्रव्येन्द्रियाँ हैं ? [१०४१-८] गौतम ! (वे) नहीं हैं ? [प्र.] भगवन् ! बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ?
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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