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पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद : द्वितीय उद्देशक]
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संखेजा। - [१०४० प्र.] भगवन् ! सर्वार्थसिद्ध देवों की (अतीत, बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी-कितनी
[१०४० उ.] गौतम ! (इनकी) अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं, बद्ध संख्यात हैं (और) पुरस्कृत संख्यात .
१०४१.[१] एगमेगस्स णं भंते ! णेरइयस्स णेरइअत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीया ? गोयमा ! अणंता । केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा ! अट्ठ । केवतिया पुरेक्खडा?
गोयमा ! कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽस्थि अट्ठ वा सोलस वा चउवीसा वा संखेजा वा असंखेज्जा वा अणंता वा ।
[१०४१-१ प्र.] भगवन् ! एक-एक नैरयिक की नैरयिकपन (नारक अवस्था) में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? .
[१०४१-१ उ.] गौतम ! अनन्त हैं । [प्र.] बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! (वे) आठ हैं । [प्र.] पुरस्कृत (आगामी काल में होने वाली) द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ?
[उ.] गौतम ! (पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ) किसी (नारक) की होती हैं, किसी की नहीं होती । जिसकी होती हैं, उसकी आठ, सोलह, चौबीस, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होती हैं।
[२] एगमेगस्स णं भंते ! णेरइयस्स असुरकुमारत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीता ? गोयमा ! अणंता । केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा ! णत्थि । केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽत्थि अट्ठ वा सोलस वा चउवीसा वा संखेजा वा