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________________ २०२] • [ प्रज्ञापनासूत्र [१०३७] सर्वार्थसिद्ध देव की (प्रत्येक की) अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त, बद्ध आठ और पुरस्कृत भी आठ होती हैं । १०३८.[१] णेरइयाणं भंते ! केवतिया दव्विंदिया अतीया ? गोयमा ! अणंता । केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा ! असंखेजा। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! अणंता । [१०३८-१ प्र.] भगवन् ! (बहुत-से) नारकों की अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [१०३८-१ उ.] गौतम ! अनन्त हैं । [प्र.] (उनकी) बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! असंख्यात हैं। [प्र.] (उनकी) पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! अनन्त हैं। [२] एवं जाव गेवेजगदेवाणं। णवरं मणूसाणं बद्धेल्लगा सिय संखेजा सिय असंखेज्जा । __[१०३८-२] इसी प्रकार (असुरकुमारों से लेकर) यावत् (बहुत-से) ग्रैवेयक देवों (की अतीत्, बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों) के विषय में (समझ लेना चाहिए।) विशेष यह कि मनुष्यों की बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ संख्यात और कदाचित् असंख्यात होती हैं। १०३९. विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवाणं पुच्छा ? गोयमा ! अतीता अणंता, बद्धेल्लगा असंखेजा, पुरेक्खडा असंखेजा । [१०३९ प्र.] भगवान् ! पृच्छा है कि (बहुत-से) विजय, वेजयन्त, जयन्त और अपराजित देवों की (अतीत, बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी-कितनी हैं ? [१०३९ उ.] गौतम ! (इनकी) अतीत (द्रव्येन्द्रियाँ) अनन्त हैं, बद्ध असंख्यात हैं (और) पुरस्कृत असंख्यात हैं। १०४०. सव्वट्ठसिद्धगदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! अईया अणंता, बद्धेल्लगा संखेजा, पुरेक्खडा
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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