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• [ प्रज्ञापनासूत्र
[१०३७] सर्वार्थसिद्ध देव की (प्रत्येक की) अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त, बद्ध आठ और पुरस्कृत भी आठ होती हैं ।
१०३८.[१] णेरइयाणं भंते ! केवतिया दव्विंदिया अतीया ? गोयमा ! अणंता । केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा ! असंखेजा। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! अणंता । [१०३८-१ प्र.] भगवन् ! (बहुत-से) नारकों की अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [१०३८-१ उ.] गौतम ! अनन्त हैं । [प्र.] (उनकी) बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! असंख्यात हैं। [प्र.] (उनकी) पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! अनन्त हैं।
[२] एवं जाव गेवेजगदेवाणं। णवरं मणूसाणं बद्धेल्लगा सिय संखेजा सिय असंखेज्जा । __[१०३८-२] इसी प्रकार (असुरकुमारों से लेकर) यावत् (बहुत-से) ग्रैवेयक देवों (की अतीत्, बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों) के विषय में (समझ लेना चाहिए।) विशेष यह कि मनुष्यों की बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ संख्यात और कदाचित् असंख्यात होती हैं।
१०३९. विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवाणं पुच्छा ? गोयमा ! अतीता अणंता, बद्धेल्लगा असंखेजा, पुरेक्खडा असंखेजा ।
[१०३९ प्र.] भगवान् ! पृच्छा है कि (बहुत-से) विजय, वेजयन्त, जयन्त और अपराजित देवों की (अतीत, बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी-कितनी हैं ?
[१०३९ उ.] गौतम ! (इनकी) अतीत (द्रव्येन्द्रियाँ) अनन्त हैं, बद्ध असंख्यात हैं (और) पुरस्कृत असंख्यात हैं।
१०४०. सव्वट्ठसिद्धगदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! अईया अणंता, बद्धेल्लगा संखेजा, पुरेक्खडा