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पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद: द्वितीय उद्देशक]
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असुरकुमारस्स (सु. १०३१)। णवरं मणूसस्स पुरेक्खडा कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽस्थि अट्ठ वा नव वा संखेजा वा असंखेजी वा अणंता वा ।
_ [१०३४] पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और सौधर्म, ईशान देव की अतीत, बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों के विषय में (सू. १०३१ में) जिस प्रकार असुरकुमार के विषय में (कहा है, उसी प्रकार समझना चाहिए।) विशेष यह है कि पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ किसी मनुष्य के होती हैं, किसी के नहीं होती। जिसके (पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ) होती हैं, उसके आठ, नौ संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होती हैं ।
१०३५. सणंकुमार-माहिंद-बंभ-लंतग-सुक्क-सहस्सार-आणय-पाणय-आरण-अच्चुयगेवेजग-देवस्स य जहा नेरइयस्स (सु. १०३०)।
. [१०३५] सनत्कुमार, माहेन्द्र, बह्मलोक, लान्तक, शुक्र, सहस्नार, आनन्त, प्राणत, आरण, अच्युत और ग्रैवेयक देव की अतीत, बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों के विषय में (सू.१०३० में उक्त) नैरयिकों के (अतीतादि के ) समान जानना चाकहए ।
१०३६. एगमेगस्स णं भंते ! विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवस्स केवतिया दव्विंदिया अतीया?
गोयमा ! अणंता । केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा ! अट्ठ । केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! अट्ठ वा सोलस वा चउवीसा वा संखेज्जा वा ।
[१०३६ प्र.] भगवन् ! एक-एक विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देव की अतीत द्रव्येन्द्रियां कितनी हैं ?
[१०३६ उ.] गौतम ! अनन्त हैं । [प्र.] भगवन् ! विजयादि चारों में से प्रत्येक की बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! आठ हैं । [प्र.] भगवन् ! (इनकी प्रत्येक की) पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! (वे) आठ, सोलह, चौवीस या संख्यात होती हैं । १०३७. सव्वट्ठसिद्धगदेवस्स अतीता अणंता, बद्धेल्लगा अट्ठ, पुरेक्खडा अट्ठ ।