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________________ २००] [प्रज्ञापनासूत्र [उ.] गौतम ! आठ हैं । [प्र.] (भगवन् ! एक-एक असुरकुमार के) पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! आठ हैं, नौ हैं, संख्यात हैं, असंख्यात हैं, या अनन्त हैं । [२] एवं जाव थणियकुमाराणं ताव भाणियव्वं । [१०३१-२] नागकुमार से ले कर स्तनितकुमार तक (की अतीत, बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों के विषय में भी) इसी प्रकार कहना चाहिए । ... १०३२.[१]एवं पुढविक्काइय-आउक्काइय-वणप्फइकाइयस्स वि ।णवरं केवतिया बद्धेल्लगा? त्ति पुच्छाए उत्तरं एक्के फासिदिए पण्णत्ते । [१०३२-१] पृथ्वीकायिक, अप्कायिक और वनस्पतिकायिक (की अतीत और पुरस्कृत इन्द्रियों के विषय में) भी इसी प्रकार (कहना चाहिए ।) . [प्र. उ.] विशेषतः इनकी (प्रत्येक की) बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ऐसी पृच्छा का उत्तर है - (इनकी बद्ध द्रव्येन्द्रिय) एक (मात्र) स्पर्शनेन्द्रिय कही गई है। [२] एवं तेउक्काइय-वाउक्काइयस्स वि । णवरं पुरेक्खडा णव वा दस वा । - [१०३२-२] तेजस्कायिक और वायुकायिक की अतीत और बद्ध द्रव्येन्द्रियों के विषय में भी इसी प्रकार (पूर्ववत्) कहना चाहिए। विशेष यह है कि इनकी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ नौ या दस होती हैं । १०३३.[१] एवं बेइंदियाण वि।णवरं बद्धेल्लगपुच्छाए दोण्णि । _ [१०३३-१] द्वीन्द्रियों की (प्रत्येक की अतीत और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों के विषय में) भी इसी प्रकार पूर्ववत् कहना चाहिए। विशेष यह कि (इनकी प्रत्येक की) बद्ध (द्रव्येन्द्रियों) की पृच्छा होने पर दो द्रव्येन्द्रियाँ (कहनी चाहिए ।) [२] एवं तेइंदियस्स वि ।णवरं बद्धेल्लगा चत्तारि । [१०३३-२] इसी प्रकार त्रीन्द्रिय की (अतीत और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों के विषय में समझना चाहिए ।) विशेष यह कि (इसकी) बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ चार होती हैं । [३] एवं चरि दियस्स वि । नवरं बद्धेल्लगा छ। ___ [१०३३-३] इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय की (अतीत और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों के विषय में) भी (जानना चाहिए।) विशेष यह कि (इसकी) बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ छह होती हैं । १०३४. पंचेंदियतिरिक्खजोणिय-मणूस-वाणमंतर-जोइसिय-सोहम्मीसाणगदेवस्स जहा
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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