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असंखेज्जा वा अणंता वा । एवं जाव थणियकुमारत्ते ।
[१०४१-१ प्र.] भगवन् ! एक-एक नैरयिक की असुरकुमार पर्याय में अतीत (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी
हैं?
[ प्रज्ञापनासूत्र
[१०४१-१ उ.] गौतम ! अनन्त हैं !
[प्र.] बद्ध (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ?
[उ.] (वे) नहीं हैं ।
[प्र.] पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ?
[उ.] गौतम ! (वे) किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती, जिसकी होती हैं, उसकी आठ, सोलह, चौवीस, संख्यात, असंख्यात या अनन्त होती हैं।
इसी प्रकार एक-एक नैरयिक की (नागकुमारपर्याय से लेकर) यावत् स्तनितकुमारपर्याय में (अतीत, बद्ध एवं पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों के विषय में कहना चाहिए ।)
[ ३ ] एगमेगस्स णं भंते ! णेरइयस्स पुढविकाइयत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीया ?
गोयमा ! अनंता ।
केवतिया बद्धेल्लगा ?
गोयमा ! णत्थि ।
केवतिया पुरेक्खडा ?
गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽत्थि एक्को वा दो वा तिण्णि वा संखेज वा असंखेज्जा वा अनंता वा । एवं जाव वणप्फइकाइयत्ते ।
[१०४१-३ प्र.] भगवन् ! एक-एक नैरयिक की पृथ्वीकायपन में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ?
[१०४१-३ उ.] गौतम ! (वे) अनन्त हैं।
[प्र.] बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ?
[उ.] गौतम ! (वे) नहीं हैं ।
[प्र.] ( भगवन् ! इनकी) पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ?
[उ.] गौतम ! किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती । जिसकी होती हैं, उसकी एक, दो, तीन या संख्यात, असंख्यात या अनन्त होती हैं ।