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________________ २०४] असंखेज्जा वा अणंता वा । एवं जाव थणियकुमारत्ते । [१०४१-१ प्र.] भगवन् ! एक-एक नैरयिक की असुरकुमार पर्याय में अतीत (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं? [ प्रज्ञापनासूत्र [१०४१-१ उ.] गौतम ! अनन्त हैं ! [प्र.] बद्ध (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ? [उ.] (वे) नहीं हैं । [प्र.] पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! (वे) किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती, जिसकी होती हैं, उसकी आठ, सोलह, चौवीस, संख्यात, असंख्यात या अनन्त होती हैं। इसी प्रकार एक-एक नैरयिक की (नागकुमारपर्याय से लेकर) यावत् स्तनितकुमारपर्याय में (अतीत, बद्ध एवं पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों के विषय में कहना चाहिए ।) [ ३ ] एगमेगस्स णं भंते ! णेरइयस्स पुढविकाइयत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीया ? गोयमा ! अनंता । केवतिया बद्धेल्लगा ? गोयमा ! णत्थि । केवतिया पुरेक्खडा ? गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽत्थि एक्को वा दो वा तिण्णि वा संखेज वा असंखेज्जा वा अनंता वा । एवं जाव वणप्फइकाइयत्ते । [१०४१-३ प्र.] भगवन् ! एक-एक नैरयिक की पृथ्वीकायपन में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [१०४१-३ उ.] गौतम ! (वे) अनन्त हैं। [प्र.] बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! (वे) नहीं हैं । [प्र.] ( भगवन् ! इनकी) पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती । जिसकी होती हैं, उसकी एक, दो, तीन या संख्यात, असंख्यात या अनन्त होती हैं ।
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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