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________________ पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद : द्वितीय उद्देशक] १०१२.[१] कतिविहा णं भंते ! इंदियउवओगद्धा पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचविहा इंदियउवओगद्धा पण्णत्ता । तं जहा - सोइंदियउवओगद्धा जाव फासिंदियउवओगद्धा। [१०१२-१ प्र.] भगवन् ! इन्द्रियों के उपयोग का काल (अद्धा) कितने प्रकार का कहा गया है ? [१०१२-१ उ.] गौतम ! इन्द्रियों का उपयोगकाल पांच प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकारश्रोत्रेन्द्रिय-उपयोगकाल यावत् स्पर्शेन्द्रिय-उपयोगकाल । [२] एवं रइयाणं जाव वेमाणियाणं । णवरं जस्स जति इंदिया अस्थि ॥५॥ [१०१२-२] इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक के इन्द्रिय-उपयोगकाल के विषयमें समझना चाहिए। विशेष यह है कि जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों, उसके उतने ही इन्द्रियोपयोगकाल कहने चाहिए। १०१३. एतेसि णं भंते ! सोइंदिय-चक्खिदिय-घाणिंदिय-जिब्भिंदिय-फासिंदियाणं जहणियाए उवओगद्धाए उक्कोसियाए उवओगद्धाए जहण्णुक्कोसियाए उवओगद्धाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा ४ ? | _.. गोयमा ! सव्वत्थोवा चक्खिंदियस्स जहण्णिया उवओगद्धा, सोइंदियस्स जहणिया उवओगद्धा विसेसाहिया, घाणिंदियस्स जहणिया उवओगद्धा विसेसाहिया, जिब्भिंदियस्स जहणिया उवओगद्धा विसेसाहिया, फासेंदियस्स जहणिया उवओगद्धा विसेसाहिया । उक्कोसियाए उवओगद्धाए सव्वत्थोवा चक्खिदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा, सोइंदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसाहिया, घाणिंदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसाहिया, जिब्भिंदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसाहिया, फासिंदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसाहिया । जहण्णुक्कोसियाए उवओगद्धाए सव्वत्थोवा चक्खिदियस्स जहणिया उवओगद्धा, सोइंदियस्स जहणिया उवओगद्धा विसेसाहिया, घाणिंदियस्स जहणिया । उवओगद्धा विसेसाहिया, जिब्भिंदियस्स जहणिया उवओगद्धा विसेसाहिया, फासिंदियस्स जहणिया उवओगद्धा विसेसाहिया, फासेंदियस्स जहणियाहिंतो उवओगद्धाहिंतो चक्खिदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसाहिया, सोइंदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसाहिया, घाणिंदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसाहिया, जिब्भिंदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसाहिया, फासेंदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसाहिया ॥६॥ ...... [१०१३ प्र.] भगवन् ! इन श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय के जघन्य उपयोगाद्धा, उत्कृष्ट उपयोगाद्धा और जघन्योत्कृष्ट उपयोगाद्धा में कौन, किससे अल्प, बहुत तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? [१०१३ उ.] गौतम ! चक्षुरिन्द्रिय का जघन्य उपयोगाद्धा (उपयोगकाल) सबसे कम है, (उसकी
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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