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________________ १९० ] [ २ ] एवं नेरहयाणं जाव वेमाणियाणं । नवरं जस्स जतिंदिया अस्थि ॥२॥ [१००९ - २] इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक निर्वर्तना-विषयक प्ररूपणा करनी चाहिए। विशेष यह कि जिसके जितनी इन्द्रियाँ होती हैं, ( उसकी उतनी ही इन्द्रियनिर्वर्तना कहनी चाहिए ।) ॥२॥ प्रज्ञापनासूत्र १०१०. [१] सोइंदियणिव्वत्तणा णं भंते ! कतिसमइया पन्नत्ता ? गोयमा ! असंखिज्जसमइया अंतो मुहुत्तिया पन्नत्ता । एवं जाव फासिंदियनिव्वत्तणा । [१०१०-१ प्र.] भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रियनिर्वर्त्तना कितने समय की कही गई है ? [१०१०-१ उ.] गौतम ! (वह) असंख्यात समयों के अन्तर्मुहूर्त की कही है। इसी प्रकार स्पर्शनेन्द्रियनिर्वर्त्तना- काल तक कहना चाहिए । [२] एवं नेरइयाणं जाव वेमाणियाणं ॥३॥ [१०१०-२] इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर यावत् वैमानिकों की इन्द्रियनिर्वर्तना के काल के विषय में कहना चाहिए । विवेचन - द्वितीय-तृतीय निर्वर्तनाद्वार एवं निर्वर्तनासमयद्वार - प्रस्तुत दो सूत्रों में से प्रथम सूत्र में पांच प्रकार की निर्वर्तना और द्वितीय सूत्र में प्रत्येक इन्द्रिय की निर्वर्तना के समयों की प्ररूपणा की गई है। निर्वर्त्तना का अर्थ - बाह्याभ्यन्तररूप निर्वृत्ति - आकार की रचना । चतुर्थ-पंचम-पष्ठ लब्धिउपयोगाद्धा, अल्पबहुत्व उपयोग काल का द्वार १०११. [१] कतिविहा णं भंते ! इंदियलद्धी पण्णत्ता ? गोमा ! पंचविहा इंदियलद्धी पण्णत्ता । तं जहा- सोइंदियलद्धी जाव फासिंदियलद्धी । [१०११-१ प्र.] भगवन् ! इन्द्रियलब्धि कितने प्रकार की कही गई है ? [१०११-१ उ.] गौतम ! इन्द्रियलब्धि पांच प्रकार की कही है, वह इस प्रकार - श्रोत्रेन्द्रियलब्धि यावत् स्पर्शेन्द्रियलब्धि । [ २ ] एवं णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं । नवरं जस्स जति इंदिया अत्थि तस्स तावतिया लगी भाणियव्वा ॥ ४ ॥ [१०११-२] इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक इन्द्रियलब्धि की प्ररूपणा करनी चाहिए। विशेष यह कि जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों, उसके उतनी ही इन्द्रियलब्धि कहनी चाहिए । प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्रांक ३०९ १.
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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