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पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद : द्वितीय उद्देशक].
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गोयमा ! पंचविहे इंदिओवचए पण्णत्ते । तं जहा- सोइंदिओवचए चक्खिदिओवचए घाणिंदिओवचए जिब्भिंदिओवचए फासिंदिओवचए।
[१००७ प्र.] भगवन् ! इन्द्रियोपचय कितने प्रकार का कहा गया है ?
[१००७ उ.] गौतम ! इन्द्रियोपचय पांच प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार- (१) श्रोत्रेन्द्रियोपचय, (२) चक्षुरिन्द्रियोपचय, (३) घ्राणेन्द्रियोपचय, (४) जिह्वेन्द्रियोपचय और (५) स्पर्शनेन्द्रियोपचय ।
१००८.[१] णेरइयाणं भंते ! कतिविहे इंदिओवचए पण्णत्ते? गोयमा ! पंचविहे इंदिओवचए पण्णत्ते । तं जहा- सोइंदिओवचए जाव फासिंदिओवचए । [१००८-१ प्र.] भगवन् ! नैरयिकों के इन्द्रियोपचय कितने प्रकार का कहा गया है ?
[१००८-१ उ.] गौतम ! (उनके) इन्द्रियोपचय पांच प्रकार का कहा गय है, वह इस प्रकारश्रोत्रेन्द्रियोपचय यावत् स्पर्शनेन्द्रियोपचय ।
[२]एवं जाव वेमाणियाणं। जस्स जइ इंदिया तस्स तइविहो चेव इंदिओवचय भाणियव्वो॥१॥
[१००८-२] इसी प्रकार (असुरकुमारों से लेकर) यावत् वैमानिकों के इन्द्रियोपचय के विषय में कहना चाहिए। जिसके जितनी इन्द्रियाँ होती हैं, उसके उतने ही प्रकार का इन्द्रियोपचय कहना चाहिए ॥१॥
विवेचन- प्रथम इन्द्रियोपचयद्वार- प्रस्तुत सूत्रद्वय (१००७-१००८) में पांच प्रकार के इन्द्रियोपचय का तथा चौवीस दण्डकों में पाए जाने वाले इन्द्रियोपचय का कथन किया गया है। इन्द्रियोपचय अर्थात्इन्द्रियों के योग्य पुद्गलों का संग्रह ।' द्वितीय-तृतीय निर्वर्तनासमयद्वार
१००९.[१] कतिविहा णं भंते ! इंदियनिव्वत्तणा पण्णत्ता ?
गोयमा ! पंचविहा इंदियनिव्वत्तणा पण्णत्ता तं जहा- सोइंदियनिव्वत्तणा जाव फासिंदियनिव्वत्तणा।
[१००९-१ प्र.] भगवन् ! इन्द्रियनिर्वर्तना (निर्वृत्ति) कितने प्रकार की कही गई है ?
[१००९-१ उ.] गौतम ! इन्द्रियनिवर्त्तना पांच प्रकार की कही गई है, वह इस प्रकार- श्रोत्रेन्द्रियनिवर्त्तना यावत् स्पर्शनेन्द्रियनिर्वर्तना।
१. (क) प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्रांक ३०९
ख) पण्णवणासुत्तं (मूलपाठ) भा. १, पृ. २४९