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[प्रज्ञापनासूत्र
अपेक्षा) श्रोत्रेन्द्रिय का जघन्य उपयोगाद्धा विशेषाधिक है, (उसकी अपेक्षा) घ्राणेन्द्रिय का जघन्य उपयोगाद्धा विशेषाधिक है, (उससे) जिहेन्द्रिय का जघन्य उपयोगाद्धा विशेषाधिक है, (उसकी अपेक्षा) स्पर्शेन्द्रिय का जघन्य उपयोगाद्धा विशेषाधिक है। उत्कृष्ट उपयोगाद्धा में चक्षुरिन्द्रिय का उत्कृष्ट उपयोगाद्धा सबसे कम है, (उसकी अपेक्षा) श्रोत्रेन्द्रिय का उत्कृष्ट उपयोगाद्धा विशेषाधिक है, (उससे) घ्राणेन्द्रिय का उत्कृष्ट उपयोगाद्धा विशेषाधिक है, (उससे) जिह्वेन्द्रिय का उत्कृष्ट उपयोगाद्धा विशेषाधिक है, (उसकी अपेक्षा) स्पर्शेन्द्रिय का उत्कृष्ट उपयोगाद्धा विशेषाधिक है। जघन्योत्कृष्ट उपयोगाद्धा की अपेक्षा से सबसे कम चक्षुरिन्द्रिय का जघन्य उपयोगाद्धा है, (उसकी अपेक्षा) श्रोत्रेन्द्रिय का जघन्य उपयोगाद्धा विशेषाधिक है, (उसकी अपेक्षा) घ्राणेन्द्रिय का जघन्य उपयोगाद्धा विशेषाधिक है, (उसकी अपेक्षा) जिह्वेन्द्रिय का जघन्य उपयोगाद्धा विशेषाधिक है, उसकी अपेक्षा, स्पर्शेन्द्रिय का जघन्य उपयोगाद्धा विशेषाधिक है, स्पर्शेन्द्रिय के जघन्य उपयोगाद्धा से चक्षुरिन्द्रिय का उत्कृष्ट उपयोगाद्धा विशेषाधिक है, (उसकी अपेक्षा) श्रोत्रेन्द्रिय का उत्कृष्ट उपयोगाद्धा विशेषाधिक है, (उसकी अपेक्षा) घ्राणेन्द्रिय का उत्कृष्ट उपयोगाद्धा विशेषाधिक है, (उसकी अपेक्षा) जिह्वेन्द्रिय का उत्कृष्ट उपयोगाद्धा विशेषाधिक है, (उसकी अपेक्षा) स्पर्शेन्द्रिय का उत्कृष्ट उपयोगाद्धा विशेषाधिक है ॥६॥
विवेचन - चतुर्थ-पंचम-पष्ठ लब्धिद्वार, उपयोगाद्धाद्वार एवं अल्पबहुत्वद्वार - प्रस्तुत तीन सूत्रों में क्रमश: लब्धिद्वार, उपयोगाद्धाद्वार एवं उपयोगाद्धाविशेषाधिकद्धार के माध्यम से इन्द्रियावरणकर्म के क्षयोपशम की, इन्द्रियों के उपयोगकाल की एवं इन्द्रियों के उपयोगकाल के अल्पबहुत्व की प्ररूपणा की गई है।
इन्द्रियलब्धि आदि पदों के अर्थ - इन्द्रियावरणकर्म के क्षयोपशम को इन्द्रियलब्धि, इन्द्रियों के उपयोग (उपयोग से युक्त व्यापृत रहने) के काल को इन्द्रियउपयोगाद्धा एवं उपयोगाद्धा के अल्पबहुत्व या विशेषाधिक को उपयोगाद्धाविशेषाधिक कहते हैं। सातवाँ,आठवाँ,नौवाँ और दसवाँ क्रमशः इन्द्रिय-अवग्रहण-अवाय-ईया-अवग्रह द्वार
१०१४. [१] कतिविहा णं भंते ! इंदियओगाहणा पण्णत्ता ?
गोयमा ! पंचविहा इंदियओगाहणा पण्णत्ता । तं जहा- सोइंदियओगाहण जाव फासेंदियओगाहणा।
[१०१४-१ प्र.] भगवन् ! इन्द्रिय-अवग्रहण (अवग्रह) कितने प्रकार के कहे हैं ?
[१०१४-१ उ.] गौतम ! पाँच प्रकार के इन्द्रियावग्रहण कहे हैं, वे इस प्रकार - श्रोत्रेन्द्रियअवग्रहण यावत् स्पर्शेन्द्रिय-अवग्रहण ।
[२] एवं रइयाणं जाव वेमाणियाणं । णवरं जस्स जइ इंदिया अत्थि ॥७॥
१. प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्रांक ३०९