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________________ १६४] [प्रज्ञापनासूत्र [९७९ प्र.] भगवन् ! इन श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय में से अवगाहना की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से तथा अवगाहना और प्रदेशों की अपेक्षा से कौन, किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? [९७९ उ.] गौतम ! अवगाहना की अपेक्षा से सबसे कम चक्षुरिन्द्रिय है, (उससे) श्रोत्रेन्द्रिय अवगाहना की अपेक्षा से संख्यातगुणी है, (उससे) घ्राणेन्द्रिय अवगाहना की अपेक्षा से संख्यातगुणी है, (उससे) जिह्वेन्दिय अवगाहना की अपेक्षा से असंख्यातंगुणी है, (उसकी अपेक्षा) स्पर्शनेन्द्रिय अवगाहना की दृष्टि से संख्यातगुणी है। प्रदेशों की अपेक्षा से - सबसे कम चक्षुरिन्द्रिय है, (उससे) श्रोत्रेन्द्रिय प्रदेशों की अपेक्षा से संख्यातगुणी है, (उससे) घ्राणेन्द्रिय प्रदेशों की अपेक्षा से संख्यातगुणी है, (उससे) जिह्वेन्द्रिय प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुणी है, (उसकी अपेक्षा) स्पर्शनेन्द्रिय प्रदेशों की अपेक्षा से संख्यातगुणी है। अवगाहना और प्रदेशों की अपेक्षा से - सबसे कम अवगाहना की दृष्टि से चक्षुरिन्द्रिय है, (उससे) अवगाहना की अपेक्षा से श्रोत्रेन्द्रिय संख्यातगुणी है, (उससे) घ्राणेन्द्रिय अवगाहना की अपेक्षा से संख्यातगुणी है, (उससे) जिह्वेन्द्रिय अवगाहना की अपेक्षा से असंख्यातगुणी है, (उससे) स्पर्शनेन्द्रिय अवगाहना की अपेक्षा से संख्यातगुणी है, स्पर्शनेन्द्रिय की अवगाहनार्थता से चक्षुरिन्द्रिय प्रदेशार्थता से अनन्तगुणी है, (उससे) श्रोत्रेन्द्रिय प्रदेशों की अपेक्षा से संख्यातगुणी है, (उससे) घ्राणेन्द्रिय प्रदेशों की अपेक्षा से संख्यातगुणी है, (उससे) जिह्वेन्द्रिय प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुणी है, (उससे) स्पर्शनेन्द्रिय प्रदेशों की अपेक्षा से संख्यातगुणी है। ९८०.[१] सोइंदियस्स णं भंते ! केवतिया कक्खडगरुयगुणा पण्णत्ता ? गोयमा ! अणंता कक्खडगरुयगुणा पण्णत्ता । [९८०-१ प्र.] भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय के कर्कश और गुरु गुण कितने कहे गए हैं ? [९८०-१ उ.] गौतम ! (श्रोत्रेन्द्रिय के) अनन्त कर्कश और गुरु गुण कहे गए हैं। [२] एवं जाव फासिंदियस्स । [९८०-२] इसी प्रकार (चक्षुरिन्द्रिय से लेकर) यावत् स्पर्शनेन्द्रिय (तक के कर्कश और गुरु गुण के विषय में कहना चाहिए ।) ९८१.[१] सोइंदियस्स णं भंते ! केवतिया मउयलहुयगुणा पण्णत्ता ? गोयमा ! अणंता मउयलहुयगुणा पण्णत्ता। [९८१-१ प्र.] भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय के मृदुं और लघु गुण कितने कहे गए हैं ? [९८१-१ उ.] गौतम ! (श्रोत्रेन्द्रिय के) मृदु और लघु गुण अनन्त कहे गए हैं । [२] एवं जाव फासिंदियस्स ।
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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