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पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद : प्रथम उद्देशक]
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गोयमा ! अणंतपएसिए पण्णत्ते । [९७७-१ प्र.] भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय कितने प्रदेश वाली कही गई है ? [९७७-१ उ.] गौतम ! (श्रोत्रेन्द्रिय) अनन्त-प्रदेशी कही गई है। [२] एवं जाव फासिंदिए । [९७७-२] इसी प्रकार यावत् स्पर्शेन्द्रिय (के प्रदेशों के सम्बन्ध में कहना चाहिए)। ९७८.[१] सोइंदिए णं भंते ! कतिपएसोगाढे पण्णत्ते ? गोयमा ! असंखेजपएसोगाढे पण्णत्ते । [९७८-१ प्र.] भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय कितने प्रदेशों में अवगाढ कही गई है ? [९७८-१ उ.] गौतम ! (श्रोत्रेन्द्रिय) असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ कही है। [२] एवं जाव फासिंदिए । [९७८-२] इसी प्रकार (चक्षुरिन्द्रिय से लेकर) यावत् स्पर्शेन्द्रिय तक के विषय में कहना चाहिए ।
विवेचन - चतुर्थ-पंचम कतिप्रदेशद्वार एवं अवगाढद्वार - प्रस्तुत दो सूत्रों (सू. ९७७-९७८) में बताया गया है कि कौन-सी इन्द्रिय कितने प्रदेशों वाली है तथा कितने प्रदेशों में अवगाढ है ? अवगाहनादि की दृष्टि से अल्पबहुत्वद्वार
९७९. एएसि णं भंते ! सोइंदिय-चक्खिदिय-घाणिंदिय-जिभिदिय-फासिंदियाणं ओगाहणट्ठयाए पएसट्टयाए ओगाहणपएसट्टयाए कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?
__ गोयमा ! सव्वत्थोवे चक्खिदिए ओगाहणट्ठयाए सोइंदिए ओगाहणट्ठयाए संखेजगुणे, घाणिदिए ओगाहणट्ठयाए संखेजगुणे, जिभिदिए ओगाहणट्ठयाए असंखेजगुणे, फासिंदिए ओंगाहणट्ठयाए संखेज्जगुणेः पदेसट्टयाए - सव्वत्थोवे चक्खिदिए पदेसट्ठयाए, सोइंदिए पदेसट्टयाए संखेजगुणे, घाणिदिए पएसट्ठयाए संखेजगुणे, जिभिदिए पएसट्ठयाए असंखेजगुणे, फासिंदिए पएसट्ठयाए संखेजगुणेः ओगाहणपएसट्ठयाए - सव्वत्थोवे चक्खिदिए ओगाहणट्ठयाए, सोइंदिए ओगाहणट्ठयाए संखेजगुणे, घाणिदिए ओगाहणट्ठयाए संखेजगुणे, जिभिदिए ओगाहणट्ठयाए असंखेजगुणे, फांसिदिए ओगाहणट्ठयाए संखेजगुणे, फासिंदियस्स ओगाहणट्ठयाएहितो चक्खिदिए पएसट्ठयाए अणंतगुणे, सोइदिए पएसट्ठयाए संखेजगुणे, घाणिदिए पएसट्ठयाए संखेजगुणे,जिल्भिदिए पएसट्ठयाए असंखेजगुणे, फासिदिए पएसट्ठयाए संखेजगुणे ।